राम बोध से मेरा
संपर्क कब हुआ इतना मुझे ठीक-ठाक याद नहीं है। किंतु उनसे मिलने का प्रयोजन
प्रत्येक व्यक्ति का लगभग एक सा ही रहता है इस कारण मेरा भी प्रयोजन वैसा ही था बात कुछ यूं है। राम बौद्ध जी नल और ट्यूबवेल के विशेष कारीगर
है। आसपास के 71 कोश मे उनकी तूती बोलती थी। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा उनके
हाथ के नल का पानी पीकर ही अपना जीवन गुजार पाता था। अर्थात क्षेत्र वासियों के
लिए वह पूजनीय थे,
सरकारी रजिस्टर में उनकी जाति के आगे हरिजन लिखा जाता था
इसका कारण अज्ञात है।
कुछ पुरातन मानसिकता वाले व्यक्ति उनके हाथ का जल पीना उचित
नहीं मानते थे किंतु फिर भी नल उन्हीं से ही लगावते थे, नल लगवाने के
मामले में मशीन के बाद लोग उन्हीं का जिक्र करते हैं बिना उनके पेयजल उपलब्ध नहीं
था ऐसा लोगों का मत था | क्षेत्रवासियों की पेयजल की समस्या अकेले उन के दम पर ही
निर्भर थी। जब क्षेत्र का कोई भक्त उनसे
कहता," आप कि जोड़ का
कारीगर ना इस इलाके में दूसरा कोई है ना होगा
तो वे बहुत प्रसन्न होते और पूरे हर्षोल्लास के साथ शानदार तरीके से अपनी
देशी मूछों पर जोरदार ताऊ देते और कहते मेरे जीते जी कोई दूसरा इस इलाके मे राज
नहीं कर सकता है अगर कोई करेगा भी तो वह मेरा पुत्र होगा"।इस बात को झूठलाने
का साहस आज तक कोई दूसरा कारीगर नहीं कर सका इसलिए
राम बोध जी अपने क्षेत्र के अपराजय योद्धा थे।
गांव में विधवा विवाह कि कोई परंपरा नहीं थी आज उनकी बड़ी बहू विधवा हो गई बड़े
लड़के को सांप ने डस लिया था लोगों ने कहा सब उसकी पत्नी रागिनी का किया धरा है किंतु राम बोध नहीं माने
उन्होंने अपने बड़े लड़के की विधवा बहू
की अपने छोटे लड़के से शादी कराने की
भीष्म प्रतिज्ञा कि मित्रों रिश्तेदारों
और गांव वालों ने समझाया डराया और धमकाया जो उनको
नागवार गुजरा। पंचायत में उनका हुक्का पानी बंद कर दिया गया उन लोगों ने
उनसे काम कराना बंद कर दिया।वे अंदर से तिलमिला उठे । पहले उन्होने सोचा आत्महत्या
करके जीवन लीला समाप्त कर ली जाए किंतु दायित्वों के बोझ के आगे वे ऐसा ना कर सके
। राम बौद्ध जी ने गांव के सभी गणमान्य लोगों को बुलाया और कहा मैंने गांव की जीवन
भर सेवा की है अगर आप लोगों मुझसे मिलने
नहीं आए तो मैं जीवन त्याग दूंगा और अभी आत्महत्या कर लूंगा गांव मे सभी रामबोध जी
को जानते थे सभी जिस हाल में थे उसी हाल
में दौड़े क्योंकि वह लोग किसी की हत्या का बोझ अपने उपर नहीं ले सकते थे। घंटों वाक युद्ध चला अंत
में राम बोधजी ने अपने छोटे लड़के से
और विधवा बहू से पूछा क्या तुम दोनों शादी कर सकते हो ?दोनो ने हां मे सिर हिलाया उन्होंने कहा लो फैसला हो
गया और गांव में बड़े मंदिर में जाकर दोनों की शादी करवा दी इस तरह गांव के सभी
लोगों ने उन्हें बागी घोषित कर दिया और सदा सदा के लिए गांव निकाला का आदेश दिया|
वे मुस्कुराए और नवविवाहित बेटे बहू को आशीर्वाद देकर गांव से बाहर निकल गए इस घटना
की सालों बाद भी वे गांव ना लौटे। गांव
वाले आज भी उसे बागी कहते हैं लेकिन अब
परंपरा बदल गई है विधवा विवाह हो जाते हैं
लेकिन उस बागी की वजह से , मरने के बाद वहां एक मंदिर बना जिसे बागी बाबा के मंदिर के
नाम से जाना जाता है गांव की निस्सहाय विधवा महिलाएं वहां जाकर अपने जीवन की मंगल
कामना करती है। ऐसी मान्यता है की बागी बाबा उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें