बुधवार, 20 मई 2020

प्रयास



  Two Girls Doing School Worksदिव्य कुमार  को पूरा विद्यालय सिरफिरे अध्यापक के रूप में जानता था कारण बस इतना ही था | वह हरकतें  सिरफिरे वाली   करते थे ।  दिव्य कुमार जी हिंदी के अध्यापक  ठहरे लेकिन उनकी बातों से चंद्रशेखर आजाद राम प्रसाद बिस्मिल राणा सांगा की तीव्र अनुभूति होती थी बच्चों के बीच वह अत्यधिक सम्मानित  थे, इसका कारण अज्ञात है। परीक्षा में छात्र उनको उदार दाता मानते थे शिक्षा में भाग्य विधाता दिव्य कुमार दूसरे सरकारी अध्यापकों की तरह  ही थे किंतु व्यवहार में सबसे  अलग खैर जाने दीजिए अब इन बातों में क्या रखा है
जिसका नाम इतना दिव्य हो उसका  कार्य तो दिव्य होगा ही लोग ऐसा ही कुछ लोग उनके बारे में कहा करते थे। दिव्य कुमार जी को अपने देश पर गर्व था  , देश को  उन पर गर्व था या नहीं यह देश जाने।
जब से इस इंटर कॉलेज में हिंदी के अध्यापक बन कर आए थे कुछ ना कुछ अजीब घटित हो ही  जाता था लोग उस मास्टर को  भाग्यशाली समझते थे।।
दिव्य कुमार जी इंटरमीडिएट साहित्य के  कक्षा अध्यापक  ठहरे साहित्य के  मानीटर को बुलाया और अपनी कक्षा में  व्यायाम की अतिरिक्त  कक्षा की घोषणा कर दी बच्चे खुश हुए चलो पढ़ाई के साथ मौज मस्ती का भी जुगाड़ हो गया ।उधर  प्रधानाचार्य जी ने दिव्य को अपने कार्य में हस्तक्षेप करते हुए मान लिया वे  गुस्से से लाल हो गए  शीघ्र  उन्होंने दिव्य कुमार को कार्यालय में हाजिर होने का आदेश दिया आदेश  लेकर चपरासी उनके  पास पहुंचा।
 प्रधानाचार्य जी पुराने विचारों के ठहरे दिव्य कुमार जी क्रांतिकारी अध्यापक ठहरे टकराव सुनिश्चित था । विजय अथवा पराजय से ऊपर उठकर दोनों ने लंबे समय तक वाक युद्ध किया मानो  दिनकर जी की रश्मिरथी प्रधानाचार्य जी के कार्यालय में सजीव हो उठी हो जब बात बहुत बढ़ गई साथी  अध्यापकों ने आकर कहा  प्रधानाचार्य जी अगर मास्टर साहब पढ़ाना चाहते हैं तो पढ़ाने दीजिए अगर व्यायाम कराना चाहते हैं तो कराने दीजिए  इससे तो  हमारे विद्यालय का नाम ही होगा  आपको कोई हानि नहीं होगी  एक  तरीके से आपका ही नाम होगा। फिर आप असंतुष्ट क्यों है?
 अरे भाई हमारा यह  प्रयोजन नहीं था आप गलत समझ रहे हैं ।अरे भाई हम प्रधानाचार्य हैं विद्यालय की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी होती है। अगर यह विद्यालय की सुरक्षा की जिम्मेदारी की गारंटी ले तो हम इन्हें  यह कार्य   सौंप सकते हैं ।इस कार्य में हम इनको विद्यालय के सुरक्षा गार्ड भी मुहैया नहीं करा सकते क्योंकि उनका भी टाइमिंग होता है और यह महाशय  पूरे दिन विद्यालय खोलने  के चक्कर में रहते हैं । जो कि एक असंभव कार्य है।प्रधानाचार्य  ने कहा इसके लिए एक एग्रीमेंट करना पड़ेगा  एक हलफनामा में मैं सभी शर्ते लिख देता हूं और  दिव्य कुमार जी इसमें साइन करके पूरी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो जाएं ।“अपने छात्रों के जीवन के लिए मैं आपकी सभी शर्तें स्वीकार करता हूं”  दिव्य कुमार जी ने कहा और जेब से नीला पेन  पर निकालते हुए शानदार तरीके से उसमें अपने हस्ताक्षर चिपका दिए।  प्रधानाचार्य के चेहरे पर कातिलाना मुस्कान देखी जा सकती थी। Photo of a Man Sitting while Holding Newspaper
जिस को देखकर सभी अध्यापक  भयभीत थे शिवाय दिव्य कुमार के  आखिर वे  एक सिरफिरे अध्यापक थे । अब उस सिरफिरे अध्यापक को कौन  ? समझाएं कि उसे फंसाने की साजिश की जा रही है। 
आज दिव्य कुमार जी कुछ जल्दी ही उठ गए कसरत की दूध पिया  लेकिन शहद के साथ अपना ट्रक सूट पहना  शीघ्र ही  विद्यालय आ  धमके । बच्चे उनको अपना भाग्य  विधाता मानते थे  बच्चों के मध्य में  यह  किवदंती  प्रसिद्ध थी  एक बार गुरु जी ने आशीर्वाद दे दिया  तो जीवन में कभी असफल नहीं होंगे और यह  काफी हद तक सच ही  था। कारण अज्ञात है। लेकिन गुरु जी का आशीर्वाद किसी  परिश्रमी संघर्षशील निष्ठा वादी उन्हीं की तरह जी तोड  परिश्रम करने वाले लोगों के लिए सुरक्षित था। 
अपने छात्रों के भविष्य के लिए उनको दिया जाना जाने वाले सरकारी वेतन का प्रयोग  भी उनके दृष्टिकोण में  अनुचित  नहीं था  इसने कई बार  धन के अभाव में वह भोजन नहीं कर पाते थे।  आखिर सिरफिरे  अध्यापक  ठहरे। 
उनकी पारखी नजरें  बाल्यकाल में ही आईएएस आय एफ एस आईपीएस जैसी प्रशासनिक  सेवाओं के अधिकारियों की आधिकारिक घोषणा कर देती और जो आगे चलकर सत्य साबित होती है इससे इलाके में दूर-दूर तक उनका नाम फैल गया और  क्यों ना फैले श्री कुमार ऐसे अध्यापक थे  जिन्होंने शिक्षा के दीप्तिमान दिए में अपने जीवन के तेल की आहुति दी थी  जो छात्रों के जीवन में वरदान साबित हुई  प्रधानाचार्य भी अब रिटायर हो चुके थे, पूरे विद्यालय में अब उनका एक भी विरोधी नहीं था निश्चय ही इस बार वह प्रधानाचार्य चुने जाएंगे इसमें कोई संदेह नही है । 
 श्री कुमार अब 35 वर्ष की उम्र में बुजुर्ग लगने लगे थे दिन-रात के अथक परिश्रम ने उनके शरीर को तोड़ दिया था कैंसर और डायबिटीज में उन्हें युद्ध में ललकार दिया था जिससे दिन रात में युद्ध कर रहे थे और उनके विद्यार्थी बड़े-बड़े पदों पर सुशोभित हो रहे थे सम्मान था उनका पूरे क्षेत्र में लेकिन घर में अन्न नहीं था  क्योंकि वे विद्यार्थियों से फीस नहीं लेते थे और अपने सरकारी वेतन का सदैव वही हश्र होता जो होना चाहिए था  वह असमय ही गरीब छात्रों की फीस भरने में चला जाता था । 
 अब दिव्य जी ने घर जाना छोड़ दिया था आखिर वहां था ही कौन माता पिता थे ही नहीं शादी उन्होंने कि नहीं थी  अपने छात्रों को ही अपने  बच्चों मानते थे । बड़े-बड़े अधिकारी आ कर  जब उनके चरण छूते तो  सह अध्यापक अंदर से  जल भुन  जाते ।  विद्यालय के एक छोटे से कमरे में ही उन्होंने अपना आवास बना लिया किसी प्राइवेट कंपनी के कस्टमर केयर लाइन की तरह वे अपने छात्रों के लिए 24 घंटे उपलब्ध हो गए यही उनकी दिनचर्या थी ।   उनके ही एक छात्र  जिला अधिकारी बनकर उनके जिले आये  जिन्होंने उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें  प्रधानाचार्य जी का पद पर प्रमोशन लेटर दे दिया और अब हमारे   दिव्य जी प्रधानाचार्य जी बन गए।लोगों ने उन्को  शुभकामनाएं भेजी 
उसी रात वे सोये रह गये सुबह  जब उनके विद्यार्थी पहुंचे तो उनका  स्वर्गवास हो चुका था यह खबर जंगल की आग की तरह पहुंच गई दूर-दूर से उनके प्रिय विद्यार्थी उनके अंतिम दर्शनों के लिए आ  पहुंचे  गुरु जी ने आज अपने सभी छात्रों अंगूठा दिखा  दिया सभी की आंखें  नम  थी लोग रो रहे थे अंतिम यात्रा के जनसैलाब को रोक पाना  पुलिस के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था पीएसी बुलाई गई लेकिन भीड़ कंट्रोल नहीं हुई सुबह से शाम तक गंगा तट पर लोगों का मेला लगा रहा  मानो किसी सैनिक के   शहीद होने पर राजकीय सम्मान से उसका अंतिम संस्कार किया जा रहा हो लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी उसके अंतिम संस्कार के पैसे नहीं थे।  क्योंकि  वह  एक  सरफिरा अध्यापक था। 
बाद में उस विद्यालय में  दिव्य कुमार जी की एक बड़ी प्रतिमा लगाई गई उस में फूल  मालाएं पहना  गये  लेकिन  मानवता की इस महान विभूति का जीते जी जो सम्मान और  देख रेख कि जानी चाहिए थी वह  ना हो सकी। यह सभी ने  स्वीकार किया।

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