रोज की तरह आज भी कुमार अपनी संस्था की पोशाक पहने में व्यस्त था टी-शर्ट एवं पैंट परफ्यूम एक बार उड़ा कर किसी प्रसिद्ध पाउडर का प्रयोग करके एक बैग में भोजन रखकर पीली गांव की गंदी टेढ़ी-मेढ़ी गलियां पार कर रहा था। पीली की बदबूदार गलियां पार करके सरकारी आवास कि शांत गलियां अक्सर उसे बस स्टैंड पर लाकर खड़ा कर देती थी । यह उपक्रम मात्र था संस्था एवं घर के बीच वास्तव धन कमाने से ज्यादा उदर पूर्ति मात्र रह गई थी। रास्ते में उसका तीव्र गामी मन दफ्तर पहुंचकर वहां बिखरे हुए काम पर एकाग्रचित हो उठा।
कुमार जानता था यह कार्य उसकी शिक्षा के अनुरूप नहीं हैं किंतु भारतीय बेरोजगारी में अपना योगदान वह
नहीं देना चाहता था चाहे इसकी कीमत अपने विश्वविद्यालय से प्राप्त डिग्री का मजाक
उड़ाना ही क्यों ना हो?
गर्मी की तेज धूप में एसी बस में बैठकर
भिखारी को भीख मांगने पर भी उसको भिखारी पर दया नहीं आई उसने
सोचा अपना अपना व्यवसाय है!
मस्तिक में विचार उठा वह भी एक भिखारी है
सम्मानित भिखारी, भिखारी को तीन कैटेगरी में बांटना चाहिए एक पढ़े-लिखे भिखारी दूसरे रिश्वतखोर
भिखारी तीसरे सड़क के भिखारी । हर कैटेगरी की तीन तीन उपश्रेणियां होनी चाहिए एक अंतर भारतीय भिखारी बोर्ड होना चाहिए सीईओ से
लेकर असिस्टेंट भिखारी बाबा भिखारी एवं अन्य पदों का सृजन किया जाना चाहिए तथा भीख मांगने से
पहले भिखारी मैनेजमेंट का कोर्स आवश्यक हो और उसकी उसका
प्रशिक्षण भी नए तरह के संस्थानों में दिया जाए शासन द्वारा ऐसे संस्थानों का निर्माण किया जाए।
aaj yh hi haal sab ke saath h
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