रमन ने अपनी बेटियों को कभी भी दूब
की छड़ी से भी नहीं मारा था परंतु आज जब उनकी बेटियां विवाह योग्य हो गई थी तो
उनकी चिंता का विषय सुसंस्कृति योग्य यो एवं संपन्न व्यक्ति से अपनी बेटी का विवाह
करना था वर खोजने कि प्रक्रिया अपने चरम
पर थी परंतु वर पक्ष की लाइफ टाइम मांगे और डोनेशन के हाई-फाई रिकॉर्ड सुनकर रमन
मजबूर हो जाया करते|
उनको ऐसा प्रतीत होता कि दुनिया
के बदनसीब व्यक्तियों में उनका पहला स्थान सुनिश्चित है उनकी आंखें नम हो जाया करती| पत्नी के लाख समझाने के बाद भी वे अपने बड़ी बेटी का रिश्ता किसी कम अच्छे व्यक्तित्व से नहीं करना
चाहते थे। अंत में उन्होंने एक फौजी से अपनी बेटी का रिश्ता पक्का कर लिया ।
'देखिए हमें 50,000 नगद और एक हीरो डान गाड़ी चाहिए " लड़के की मा ने कहा "ठीक है हम
देंगे" रमन ने स्वीकार की सुनो फ्रिज कूलर पंखा और सोफा सेट चार थान जेवर सभी
मेहमानों के लिए नई पोशाक ये तो आप देंगे ही लड़के के पिता ने प्रस्ताव रखा
हां हमें आपके हर प्रस्ताव मंजूर है परंतु आपसे यह हमारी एक विनती है हमारी लड़की
को आप कोई कष्ट ना देना क्योंकि मुझे अपनी बेटियां बहुत ही प्यारी हैं रमन ने निवेदन किया
ठीक है आप ही देख लो मेरे दोनों पुत्र भारतीय सेना में सैनिक है और मेरे घर में
किसी वस्तु का अभाव ना है ना होगा और अगर आपने दहेज देने में आनाकानी की तब ही आप कि पुत्री को कष्ट ही कष्ट होंगे लड़के की मां ने धमकाया हम कभी भूल कर भी ऐसा ना करेंगे
रमन ने कहा भारतीय इतिहास में एक छोटा सा कलंक का बिंदु अंकित हुआ मांग जब विकृत रूप ग्रहण करती है तो वह भी दहेज
अथवा भीख में में बदल जाती है रमन ने अपने जीवनभर की कमाई को दहेज में देना स्वीकार कर लिया था पर अचानक एक सड़क दुर्घटना में वह विकलांग होने से बच गए थे इसके बदले
उन्होंने ₹100000 खर्च किए थे।
प्रश्न यह था की अब दहेज के लिए धन कैसे उपलब्ध किया जाए यह
प्रश्न पूरे परिवार के जेहन में गूंज रहा था अगर दहेज की मांग नहीं पूरी की जाती
तो बेटी के जीवन में बहुत अधिक दुख होंगे यही बात को सुनकर रमन अपने आंसू नहीं रोक पाते
थे शादी का दिन आ पहुंचा शादी संपन्न हो गई लड़की अपने ससुराल पहुंच गई सामान
में कुछ कटौती की गई गाड़ी भी नही दी गई दूसरे दिन सुबह बहू बनी सरिता को अपनी सास
की गंदी गंदी गालियां सुननी पड़ी।
सास द्वारा अपनी बहू को कम दहेज लाने के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा
एक बार प्रताड़ना का दौर चल निकला तो फिर क्या थप्पड़ मारना धक्के मार कर घर से बाहर निकालना
जमीन पर लिटा कर मारना और ना जाने कैसी कैसी हृदय विदारक यातनाएं दी जाने लगी जिनको
देखकर मानवता भी कभी माफ नहीं करेगी
परंतु सरिता सब कुछ सहती रही शायदविधि को यही मंजूर था।
सरिता दुख की जीती जागती मिसाल बन गई थी इस कारण उसको किसी से
मिलने नहीं दिया जाता था। ताकि वह अपनी की कहानी किसी और से ना सुना सके यहां तक
बाप बेटी को भी आपस में नहीं मिलने दिया गया दोनों दूर से देखकर आंसू बहा लिया
करते थे, अंत में अपनी खेती बेच कर उन्होंने दहेज की रकम चुकाई तब जाकर बेटी को
अपने मां-बाप के घर जाने दिया गया बेटी अपने मां से 3 साल बाद मिली बड़ी देर तक दोनों
लिपट कर रोती रही शायद यह अंतिम मुलाकात हो फिर कुछ दिन बीते सरिता अपनी ससुराल गई फिर
शुरू हुआ प्रताड़ना का नया दौर इस बार सास ने और अधिक धन की मांग रखी भिखारी के
जीवन से बदतर जीवन यापन करने वाले रमन इसे पूरा करने में असमर्थ थे।
एक बीमारी ने रमन की पत्नी को जर्जर बना दिया था बेटी के दुख ने उन्हें और ज्यादा कमजोर बना दिया था बीमारी का इलाज ना होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई यह समाचार जब सरिता को प्राप्त
हुआ तो उसने अपनी सासु मां से अपनी मृत मां के अंतिम दर्शन के लिए अनुमति मांगी।
ठीक है ठीक है चली जाना दूर से ही देखना नहीं दहेज के ₹100000 और बड़ा दूंगी चुड़ैल कहीं
कीअपनी मां को भी खा गई और न जाने कैसी कैसी गंदी गंदी गालियां दे कर उसने
भेज दिया।
सरिता ने सोचा अपनी मां को तो मै खो चुकी हूं और न जाने क्या-क्या
खोना पड़ेगा इससे अच्छा यही है कि चलो अब दोबारा ससुराल लौट के नहीं आएंगे और वहां जाकर उसकी मृत्यु हो गई
अब पता नहीं यह हत्या थी या आत्महत्या पुलिस आज तक जांच कर रही हैं पर कोई निर्णय
अभी तक नहीं आया क्योंकि उसकी हृदय गति रुक गई थी जो कि आत्महत्या भी नहीं थी और
हत्या भी नहीं लेकिन लोग जानते थे मानसिक रूप से जितना आघात उसे पहुंचाया गया था वह किसी हत्या से कम भी
नहीं खैर कुछ भी हो यह अंतिम मुलाकात थी।
इससे कोई इनकार नहीं कर सका।
Good
जवाब देंहटाएंthank u
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