मंगलवार, 5 मई 2020

विरासत


सत्यदेव लखनपुर मे हलवाई कि दुकान चलाते थे, एक बस दुर्घटना मे अपनी दोनो टांगे खो चुके थे इस कारण उनका जीवन संघर्ष  कि मिशाल बन चुका था। उनके चार पुत्र थे राम ,प्रेम , प्रताप ,कुमार सब मे आपस मे मधुर सम्बंध रखते थे कुमार को छोड कर सभी डिगी धारी थे क्योकि कुमार डिगी से ज्यादा परिवार को मह्त्व देते थे शायद इसलिए वो पढ़ नही सके ऐसा उनका निजी विचार था जिसको मानना सुनने वाले कि जिम्मेदारी थी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आईसकीम खाने के बाद उसके अवशेश को कचरे के डिब्बे मे डालने कि जिम्मेदारी ग्राहक कि होती है बेचने वाले कि नही।
कुमार सहाब सबसे छोटे थे और रोजगार प्रप्त थे कारण था अनपढ़ होना क्योकि पिताजी के स्वर्ग सिधारने के बाद घर कि जिम्मेदारी अब उनके कंधो पर थी हलवाई कि दुकान अब उनकी थी तीन शिक्षित बेरोजगार भाई और तीन जवान शादी योग्य बहने एक बिधवा मा कुल मिला कर 8 वोट थी राजनीति कि भाषा मे और कुमार साहब कि ये सब विरासत थी ,पिताजी की तेरहीवी के बाद उन्होने दुकान खोली तो चाय समोसे के अलावा कोई भी मिठाई बनाने का उपकरण शेष नही था न ही कोई राशन ही था सब कुछ तो पिता के इलाज और भाई कि पढ़ई मे बिक चुका था घर वाले सोचते थे कि दुकान तो पैसा उगल रही थी जबकी दुकान खत्म हो चुकी थी।
कुमार डिगी धारी नही थे इसलिए न शरमाए और न ही घबराए बस अपनी किश्मत कि चीटीग पर मुस्कुराये।घर मे किसी को कुछ नही बताया बस सोचते रहे अब क्या किया जाये ? उनके पास दो रास्ते थे पहला पडोस मे रहने वाली उनकी बाल सखी पिंकी के साथ शादी करके किसी शहर मे मजदूरी करके पेट पाल लिया जाये दूसरा उसको भूल कर विरासत संभाली जाये अब इसका निर्णय तो कुमार सहाब जाने  ......
खैर ये कुमार सहाब का निजी मसला है तीन भाई तो शहर को चले गये और शादी करके अपने अपने पत्नी और बच्चो के साथ सुखपूर्क जीने लगे पिंकी कि सगाई कि चर्चा पूरे मोहल्ले मे उड रही थी कुमार आशू बहाकर अपनी हलवाई कि दुकान मे चाय बना रहे थे तीनो बहनो कि शादी कुमार ने करा दी थी वो सब अपने ससुराल मे सुखी जीवन जी रही थी । कुमार आज जल्दी घर आ गये माँ ने पूछा “बेटा आज कोई बात है क्या?”
हैं आज पिंकी कि शादी मे जाना है‘” कुमार ने बडे शांत भाव से उत्तर दिया माँ फबबक के रो पडी । क्यो ? माँ बेटे केवल बिरासत लेते है न  मै विरासत दे रहा हूँ ताकि मेरा पूरा परिवार खुश रहे। माँ अवाक थी ये उसका सबसे निकम्मा बेटा माना जाता था माँ के आंसू थम नही रहे थे और कुमार सहाब शादी के लिए रवाना हो चुके थे।

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