शुक्रवार, 8 मई 2020

प्रेम पताका


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दिव्या इंटरमीडिएट परीक्षा पास करने के बाद अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाना चाहती है |यही सबसे बड़ी विडंबना थी कि उसने ऐसा सोच लिया था ,जीवन की क्षणभंगुरता का ज्ञान उसको था |इस कारण उसने सभी कक्षाओं में पास होना अनिवार्य समझा था| शायद भविष्य में उसे ऐसा मौका ना मिले इस कारण  उसने समय का उपयोग करना उचित समझा था दिव्या का रंग सावला था कि परंतु विचार उच्च कोटि के थे  इस कारण उन्होंने एक अपाहिज व्यक्ति को अपना जीवन साथी चुना था ।
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दिव्या क्या तुम  मजाक कर  रही हो ?
क्या तुमको मेरी बात मजाक प्रतीत हो रही है रमेश?
 नहीं  दिव्या तुम्हारे साथ इंटरमीडिएट पढ़ाई करते हुए आज तक तुमने आज तक कोई मजाक नही किया है,  किंतु आज इस बात पर विश्वास नहीं होता है।
 दोनों की निगाहें चार हुई जन्म जन्म का विश्वास उसमे समाया हुआ था। दिव्या के पिता एक गरीब व्यक्ति थे और उन्होंने मान लिया था पुत्री की खुशी में अपनी खुशी   छुपी होती है एवं समय आने पर उन्होंने इसे सिद्ध भी किया
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दिव्या क्या तुम जानती हो मैं तुमसे प्रेम करता था और आज भी करता हूं पर यह बात मैं कभी तुमसे कह नहीं सका क्योंकि मैं विकलांग…….
 ओहो तुम भी ना मुझे अपनी अर्धांगिनी  स्वीकार नहीं करते हो दिव्या ने इलाते  हुए कहा,  जिस किसी ने भी इस बात को सुना उसने दांतो तले उंगलियां दबा ली । उसी क्षण दोनों ने जाकर कोर्ट मैरिज कर ली दूसरे दिन राजकीय  समाचार पत्रों में में इस अद्भुत स्वार्थी या अन्य ऐसे ही रसों के जिक्र करते हुए एक पेज का चटपटा लेख लिखा गया| जो अविश्वसनीय लग रहा था खैर समाचार पत्र में छपे लेख पर लोगों को विश्वास करना ही पड़ा|

 वास्तव में प्रेम की  अलौकिक  रूप कि लौकिक  जीत थी । यहां प्रेम का आधार मन था  धन दौलत या अन्य कुछ भी नहीं । वर्षों बाद जब दिव्या ने  2 पुत्र एक पुत्री को जन्म दिया तो ऐसे आलोचनाओं को ध्वस्त करते हुए प्रेम की विजय पताका हृदय रूपी रथ पर लहरा रही थी  यही अमर प्रेम का  उदाहरण था । इसके बाद काफी वर्षों तक लोग उनके प्रेम को याद करते रहे और जब किसी  के प्रेम का जिक्र किया जाता तो उसके सुंदरता का जिक्र भी किया जाता है। स्नातक की परीक्षा के बाद बीएड परीक्षा पास करने के बाद आज दिव्या एक इंटर कॉलेज की अध्यापिका बन चुकी थी। आंखों में सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए दसवीं में हिंदी पढ़ा रही थी, पिताजी ने अपनी बेटी को पढ़ाते हुए देखा। अपने सपने को पूरा होते देख कर अपनी  खुशी को वह छिपा न  सके उनकी आंखों से आंसू निकल पडे
RANCHI, JHARKHAND, INDIA - MAY 14, 2017: Unidentified Local Little ...
पिता और बेटी के दोनों के  स्वप्न एक साथ पूरे हो गए पिता अपनी बेटी को अच्छे घर में ब्याहना चाह रहे थे और बेटी अध्यापिका बनना चाह रही थी। लेकिन एक बात थी जो लोगों के गले नहीं उतर रही थी कि एक विकलांग व्यक्ति से सीधी साधी और पूरी स्वस्थ लड़की शादी कैसे कर सकती है ? क्या कारण है?  लोग यही सोचते रहे तो क्या यही प्रेम की विजय पताका थी ! अथवा परिस्थितियों से समझौता कारण कुछ भी हो पर दिव्या आज बहुत खुश थी ।








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