रात का दूसरा पहर बीत रहा था और शांति अपने पिता के घर की टूटी चारपाई पर सोने का प्रयास कर रही थी
शायद कल उसका पति गांव आने वाला है पतिपूर्ण रूप से शराबी था और अपनी पत्नी की याद सिर्फ पैसे लेने के लिए आती थी और यह शांति का दुख: था । शांति के पिता कि मृत्यु के बाद उसके नाना ने उसका पालन पोषण किया था जीवन में सुख क्या होता
है इसका ज्ञान शांति को नहीं था पति के
अवगुणो को नजरअंदाज करते हुए शांति ने
अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद उसके साथ देना स्वीकार किया था ।
इस कारण उसे
अपने मां-बाप से भी प्रेम नही मिल
सका पति कोलकाता में नौकरी करते रहे और सारा धन नशे में समाप्त करते रहे बीमारी की चपेट में आकर घर
का रुख करते पत्नी से अपनी सेवा कराते । इस बात के लिए शांती के माता-पिता द्वारा
शांती को दंडित किया जाता था।
समय की पीड़ा
बढ़ती गई शांति दो
पुत्रीयो की माता बन चुकी थी। फिर क्या था?
शांति को उनके पति कोलकाता
लेकर पहुंच गए वहां पर उन्होंने कहा तुम भोजन करोगी तो मुझसे पूछ कर अथवा नहीं
शांति के पति तो अच्छे से अच्छा भोजन करते
के और शांती के लिए अति साधारण
भोजन का भी प्रबंध नहीं करते जीवन अपनी गति से आगे बढ़ रहा था ।
अनेक कष्टों ने शांति के जीवन को मजबूत बनाया तथा अंदर से उतना ही जर्जर
बनाया शांति तुमने अपना सारा जीवन अपने पति और बच्चों को लगा दिया पर आज तुमको क्या प्राप्त
हुआ तिरस्कार
व भूख की ज्वाला का अंत कब होगा शायद तुम्हारे जीवन के अंत
के साथ इनका भी अंत होगा शांति यही सब सोच रही थी तभी किसी ने उसको बताया आज उसके
नाती का जन्मदिन है शांति नाती के जन्म की
खुशियां मनाने लगी । खुशी दिखावटी थी इसमें कोई संदेह नहीं।
अगले छण वह अंधेरे
कमरे के एक कोने में सिसकियां भर रही थी जिसको सुनने वाला वहां कोई नहीं था दो
पुत्रियों की शादी के बाद उसने दुख को सिर्फ उसके पुत्र ने ही समझने का प्रयास किया था
इसके बाद भी पति की डाट फटकार उस पर पड़ती थी आज 60 बरसात बीत चुकी थी पर शांति को प्रताड़ना का सामना करना पड़ा था पहले माता-पिता प्रताड़ित करते थे अब पति पहले प्रताड़ना जायज भी थी अब की भी जायज है पहले प्रेम के कारण प्रताड़ित किया जाता
था अब अधिकार दिखाने के लिए किया जाता था भारतीय नारी दुनिया की सबसे
विशिष्ट
प्राणी होती है चाहे
समाज से कुछ
भी समझे पर वह अपने दायित्वों का निर्वाहन बड़ी कुशलता से करना जानती है। किंतु आज भी कुछ लोग उसे दासी समझते हैं जिसमें शांति के पति भी शामिल हैं।
आज भी शांति से उनके पैर दबाते
मालिश करवाते हैं तो पता नहीं अपनी पत्नी के खुर्दरे हाथों के स्पर्श में उन्हे क्या आनंद प्राप्त होता अनचाहे मन से शांति यह
सब करती रही जीवनभर पति के कार्यों से कष्ट भोगने वाली नारी उसके सुख में सहभाग नी
ना बनी किंतु दुख में सहभागी बनी रही कैसी
विडंबना है ! नारी अपने पुरुष का साथ नहीं छोड़ सकती परंतु पुरुष अपनी पत्नी
अर्थात नारी का साथ छोड़ने के लिए स्वतंत्र है मृत्यु शैया पर शांति के पास सब गांव के लोग बैठे बातें कर रहे थे इतना ही
सौभाग्य उस बाल विवाह की भोग्या को प्राप्त हुआ ।
Kya baat h
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