रविवार, 10 मई 2020

रोगग्रस्त


नदी में डूबकर दो युवकों की बनी जल ...

जेठ की दुपहरी  की   करालता दफन करता हुआ एक  विशाल  कृषिखंड अपनी पूर्ण आभा  से एकमात्र मानव  व्यक्तित्व के साथ शाम की प्रतीक्षा में मग्न था फसल  कट कर कृषक के घर की शोभा बढ़ रही थी ना जाने क्यों एक मानव उस अपार कृषिखंड  की विशाल बगीचे में शाम के आगमन का प्रत्यक्षदर्शी बनना चाह रहा  है
 फसल के समय चहल-पहल होना स्वाभाविक है किंतु उस आनंद का इस वीरान  कृषिखंड  से खोजना क्या मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं है?  कदाचित किसी स्त्री कीप्रतीक्षा तो  नहीं ? मानव के गठीला बदन पर परिश्रम की हठधर्मिता  उसे कृषक सिद्ध करती प्रतीत हो रही  है। किंतु अब यहां कृषक का क्या प्रयोजन?

शाम के आगमन  पर उसे  प्रसन्न होना चाहिए  किंतु उसे के अभामय मुखमंडल पर  विषाद की गहरी रेखाएं क्यों उभरी है? दूर  कही से एक नवयुवक साइकिल पर सिनेमा के किसी विरह गीत  की पंक्तियां गुनगुनाता हुआ उसीओर  आ रहा है  उस  नव युवक के गीत में मुझ में कितनी समानता है  उस मानव ने अनुभव किया उधर नवयुवक का गीत  तीव्र उतार-चढ़ाव के साथ उस वीराने में गूंज रहा था  इधर कृषक का स्वास तीव्र उतार-चढ़ाव के साथ उस नजर से स्वयं को बचाने का प्रयास कर रहा था ।

  कृषक  किसी भी तरह से उस नवयुवक से नहीं मिलना चाहता था  नवयुवक ने कृषक को बुलाने के लिए कई कार्य किए अंत मे  संतुष्ट हो गया  की कृषक वहां नहीं है ,  गीत गाने वाला  नव युवक इस कृषक का पुत्र था यह बात प्रमाणित हो चुकी है क्योंकि उसे चिढ़ाने का कार्य उसका पुत्र इसी प्रकार करता था ताकि पिताजी उस पर खींझ  सकें और उसको इस प्रकार बड़ा आनंद आता था
उसके चले जाने के बाद संतोष की सांस ले रहा था मानो कोई विपत्ति टल गई हो कितना निरीह प्राणी है ईश्वर की विशिष्ट रचना मानव आज  समझ सका है वर्षों पहले उसे गले में  पीड़ा उत्पन्न हुई थी तब गांव के ही अशिक्षित डॉक्टरों ने उसका इलाज किया था इलाज क्या था दर्द निवारक दवाएं थी जिन्होंने उसके रोग को  असाध्य बना दिया था  कारण था उचित इलाज का ना होना  जब यह समस्त दर्द निवारक दवाएं निर्मूल सिद्ध हुई तब वह शहर गया| 
गया जहां डॉक्टरी परीक्षण के बाद उसे गले का कैंसर नामक बीमारी घोषित की गई है अगर यह  फूट गया  तो  स्वर्गारोहण निश्चित है

बीमारी तो शहर वालों को होती है मुझे कैसे?  हो गई डॉक्टर के पास इस बात का जवाब नहीं है उसने सोचा यह सब मेरे कर्मों का ही फल है अब तो भोगना ही पड़ेगा सुना है इस रोग का कोई इलाज भी नहीं है डॉक्टर  चुप थे मानो उन्होंने मौन स्वीकृति दे दी हो क्योंकि वह सब जानते थे कि गरीब किसान इलाज के लिए पैसे ला नहीं पाएगा और हम फ्री इलाज  करेंगे नहीं

किसान गांव लौट आया  उसने सोचा मेरा एक खुशहाल हंसता खेलता परिवार है सिर्फ मेरे ही कारण अनायास पूरे परिवार में संकट आ जाएगा बहू के जेवर  बेटे की कमाई और अपनी बीमारी की खर्चा पूरा  गणित लगाने के बाद उसने निर्णय किया कि इतने सारे लोगों का जीवन  नरकीय  बनाने का मेरा कोई अधिकार नहीं।मुझे अपने इस रोग ग्रस्त शरीर से खुद को और अपने परिवार को मुक्त करना ही होगा?
जीवन भर अपने कठिन परिश्रम से अपने परिवार का पेट पालने वाला मैं भूमिपुत्र कभी भी अपने परिवार पर बोझ नहीं बनसकता हूं| कृषि खंड से संध्या का पलायन हो चुका था निशा आगमन हुआ मानो   झींगुर के स्वर और  रात्रिचर  पक्षी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हो ।

सामने विशाल जलाशय अपनी  श्रेष्ठतम  जल राशि के साथ मानो  किसकी प्रतीक्षा ही कर रहा हो  ? तभी एक  तीव्र   छपाक   ध्वनि ने  उस   बलिष्ठ एवं रोगग्रस्त  शरीर एवं प्राण दोनों के अंतर को सिद्ध कर दिया ।   इसके बाद उस  अमोघ जल राशि ने प्राणों  का  विलय करके  शरीर को ऊपर किनारे कर दिया ।  मानो  उस रोगग्रस्त  शरीर से उसका भी कोई लेना-देना ना हो!













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