रविवार, 3 मई 2020

चाय के पैसे

                                                                   
जाडे कि सुबह मे कोहरे का साम्राज्य स्थापित था, रानी आग के सामने बैठी थी। क्या ? करे आज सत्तर बसंत झेलने के बाद भी उसे अपने दुख: भरे दिन नही भूले थे। शादी के कुछ समय बाद ही उसने अपने पति को खो दिया था । बच्चो को पालने के लिए उसे कितने संघर्ष करना पडा था, बस यही बात उसके ह्र्दय मे टीस कि तरह उठ रही थी । अब तो उसके बच्चे भी बच्चों को जन्म दे चुके थे पर आज वह भूखे बैठी थी,उसके बच्चे ने ही उसका निवाला छीन लिया था।
बात कुछ ऐसी थी रानी के चार पुत्र थे तीन परदेश मे नोकरी करते थे एक गाव मे रहता था, रानी अकेली रहती। एक अलीशान कच्चे मकान मे रहती थी, शायद,यह उसकी मजबूरी थी क्योकि अपनी गुजर बसर के रानी खेती पर असरित थी, रानी के चार लडको का रानी से कोई लेना देना नही था, रानी के पास जंगली फलो वाला पांच पेडो वाला बाग था जिसमे उनका गाव मे रहने वाला लडका नजर लगाये बैठा था ।
एक दिन मौका पाकर लडके ने कहा “अम्मा मुझे अपना बगीजा बेच दो मै आप को २०० रुपये दे दूगा अम्मा ने हा कह दिया और लडके ने पेड काट लिए ।

रानी सोचा चलो अब पेट भर खाना मिलेगा इधर लडके ने दो दिन अम्मा को सुबह शाम चाय पिला दी और कहा अम्मा हमारा आप का हिसाब बराबर क्या चाय से किसी कि भूख मिट सकती है ? अम्मा ने दो दिन बाद भूख से प्रण त्याग दिये गाव के लोगो ने उनका अंतिम संस्कार किया उसकी लगत थी २०० रुपये तो क्या ये चाय के पैसे थे

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