रविवार, 10 मई 2020

हत्या


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कुबेरनाथ जीवन में कितनी बार हंसे थे यह उनका व्यक्तिगत मामला होकर भी विशुद्ध सामाजिक था कारण अज्ञात है। कुबेरनाथ ने जब से अपना घर छोड़ा था उनकी संपत्ति में एक टूटा फूटा कमरा ही था कमरे में एक अधबूनी चारपाई घर के पास एक नीम का पेड़ सामने एक बदबूदार  नापदान  उसके आसपास उगी  हुई  घास पर श्वानों  का  मल मूत्र विसर्जन  मच्छरों -मक्खियों का निवास स्थान  अपने आप में एक गरिमामय वस्तुएं थी ।
घर में खाना बनाने के बर्तन थे किंतु खाना उनमें बनता था अथवा नहीं आज भी यह शोध का विषय है कुबेरनाथ के परिवार में उनकी पत्नी एक बेटी दो  बेटे हैं उनके पालन-पोषण के लिए धन तो था ही नहीं गांव में काम शहर में नाम दोनों ही असाध्य प्रक्रिया का परिणाम होते हैं।  कुबेरनाथ गांव छोड़कर शहर जा चुके थे, किंतु यहां का जीवन ना तो उनके गिरते स्वास्थ्य का ध्यान रखता था ना ही  धन दे पता था जिससे वह अपने परिवार का जीवन यापन कर सकें सोचा  कि इससे  तो यही अच्छा है कि सुप्रिया गांव लौट चला जाए वही कुछ काम धाम देखेंगे कम से कम भूखे मरने से तो अच्छा है। 
कुछ खा पी कर जीवन बचाया जाए पत्नी तो कुबेरनाथ की गरीबी से तंग आकर  दिन रात कोसती थी  किंतु आज वह चुप रही  उसका यूं चुप रहना कुबेर को अखर जाता किंतु रात्रि होने का क्या प्रयोजन ईश्वर का?  कुबेरनाथ आज भी इसका भेद न पा सके । कभी-कभी रात यूं ही आंखों में कट जाती थी पता ही नहीं चलता था कि कब सोया था अथवा नहीं जब एक बार मानव जीवन में बुरा समय आता है तो सभी उसका साथ छोड़ देते हैं।
ऐसी स्थिति में मानव क्या करें?  या तो आत्महत्या कर ले , और ईश्वर की वस्तु ईश्वर को लौटा कर समस्त चिंताओं से मुक्त हो जाए अन्यथा प्रत्येक परेशानी का डट कर मुकाबला करें ऐसे ही विचारों की धारा में कुबेरनाथ वहां से चले जा रहे थे पत्नी ने कहा क्यों जी इतनी रात हो गई है अभी तक आप सोए नहीं हैं? क्या आज रात भी ऐसे ही जागकर  काट दोगे ? कुछ करते धरते तो बनता ही नहीं निकम्मे  की तरह पडे  रहते हो अभी 10 साल  बाद  लड़की  विवाह  जोग  हो जाएगी तब किसके पैर में सर रखोगे।
 कुबेरनाथ इस तरह की बातें बच्ची के जन्म के साथ सुनने लगे थे । बच्ची की बढ़ने के साथ पत्नी के ताने भी बढ़ने लगे थे किंतु बेचारे कुबेरनाथ क्या करते हैं?  वह  अपनी पुत्री से अत्यधिक प्रेम करते थे।
 जब जी तोड़ परिश्रम करने के बाद भी पेट भर खाना नहीं मिलता तो लड़की के लिए 4 या 5 लाख का वर कहां से खरीद  पाते ?
इस बात ने उनके हृदय में प्रसन्नता भरी हो ऐसा भी नहीं था किंतु वे अपने जीवन में  द्वितीय बार  हंसे  थे । 
प्रथम बार वे अपनी शादी में  हंसे थे।  होली का त्यौहार आने वाला था कुबेरनाथ ने सोचा होली में कितना पवित्र त्यौहार है। क्यों?  न इस पवित्र त्यौहार के दिन  ही अपना उद्धार कर लिया जाए होलिका दहन के लिए कई पेड़ों को काटकर एक छोटी मोटी झाड़ी बनाई गई  उसी के मध्य मे आराम से एक जर्जर  शरीर छिप कर बैठ गया रात को पंडित जी ने होलिका दहन किया जब तक होली में आग थी कोई न जान पाया और जैसे ही जैसे ही उसमें बैठे शरीर के प्राणों का अंत हुआ एक  सिसकी सी निकल गई  बड़ी ही   सजीव होली थी  इस बार की। अविस्मरणीय अद्भुत मानवता को परास्त करने वाली  सबको  व्यथित करने वाली है हृदय हीन होलिका का दहन निश्चय ही बहुत ही दुखद घटना थी
पिता की  कि मृत्यु की खबर सुनकर  पुत्री ने विषपान कर लिया जिससे उसका शरीर नीला पड़ गया और उसकी भी मृत्यु हो गई पुलिस को सूचना मिल गई दरोगा साहब जांच  करने आए किंतु पिता पुत्री की मृत्यु  की जांच रिपोर्ट पर कुछ ना लिख पाए और यह सोचते रहे कि इस  केस में रिश्वत नहीं मिली । 
नहीं तो आज मदिरा का जुगाड़ हो जाता इसके बाद भी कुबेरनाथ की पत्नी के प्रति उनकी सहानुभूति थी वह भी  संसद वाली जहां पर केवल चर्चा होती है घर की तलाशी लेते वक्त  उन्हें कुबेरनाथ  की एक पुरानी मुस्कुराती हुई फोटो मिली शायद  इस तरह कुबेरनाथ तीसरी बार हंसे  थे किंतु किस पर ? अब ये तो आप जाने ? या स्वयं कुबेरनाथ। 
दरोगा साहब पान की पीक को उसी फोटो में  थूकते  हुए बोले ससुरा समझ में ही नहीं आता है या हत्या है या आत्महत्या और कुबेर नाथ की पत्नी से पूछा आपको किसी पर शक तो नहीं है अगर हो तो बता दो नहीं बाद में हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी और दरोगा जी निकल गए  कुबेरनाथ की पत्नी उस  लाल-लाल पिक से सनी हुई फोटो और दरोगा जी को बार बार देखती रही पर अब उसके  पास कुछ कहने के लिए शब्द नहीं थे



     




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