बाबू समोसा वाले नाम से विख्यात एक सज्जन मेरे पड़ोसी बनकर
बगल वाले कमरे में आये ।जब जाकर मैंने चैन
की सांस ली, उन दिनों मैं
महाविद्यालय की पढ़ाई कर रहा था। जीवन में
मुझे कुछ प्राप्त करने की अभिलाषा मुझे ना तब थी
नहीं अब है। किंतु समोसे का मैं तब भी शौकीन था और आज भी हूं।इसलिए मेरी
बाबू साहब से मित्रता होना स्वभाविक प्रक्रिया थी। खैर इन सब बातों से मैं आपको
समोसा खाने के लिए मजबूर भी नहीं करूंगा। समोसा बाबू की बिक्री हेतु मैं ऐसा लिख
रहा हूं।ऐसी बात भी आप ना सोचेगा।बाबू से मेरी मित्रता ऐसे हुई मेरी विश्वविद्यालय
की मोटी मोटी पुस्तकें देखकर बाबू साहब
रोने लगे।मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ।मैंने सोचा बाबू साहब बड़े ही भावुक है। मेरी
श्रमसाध्य पढ़ाई पर बेचारे को दया आ गई
होगी ,इस कारण आंसू निकल गए।
फिर मुझसे भी ना रहा गया मैं भी फूट फूट कर रोने लगा । जब बात रोने पर आ जाए तो तोलिया गीला करना
मे ,मैं अपने सम्मान का प्रश्न बना लेता हूं। जब बात
मान सम्मान की हो तो लोग आंसू क्या खून
बहा देते हैं इस कारण मैंने अपने आंसू बहा कर संतोष किया।
अत्यधिक दुबले पतले होने कारण मैंने अपने खून को सुरक्षित
रखने में ही अपनी भलाई समझा। बाबू जी ने
पूछा आप क्यो रो रहे हैं?मैंने पूछा आप
क्यों रो रहे हैं? बाबूजी ने उत्तर
दिया मुझे मेरी पत्नी की याद आ गई थी लेकिन तुम क्यों रोये ?मुझे आप को रोते
हुए देख कर रोना आ गया।यार तुम तो बहुत ही
वहिहात आदमी हो किसी को भी रोता देख कर बिना मेहनत के आंखों से खारा पानी
निकाल देते हो । नालायक कहीं के। मैंने कहा कोई बात नहीं क्यों इतना रो रहे हैं
अगर पत्नी कि याद आ रही है तो गांव चले
जाइए उनसे मिल लीजिए चिट्ठी या फोन कर लीजिए इतना
परेशान होने की जरूरत क्या है? वह बोले वह अब गांव
जाने से भी नहीं मिलेगी मैं क्यों नहीं
मिलेगी।बाबूजी दुखी मन
से बोले वह अब इस दुनिया में नहीं है।
मैं उनकी ओर बड़ी ही दुख भारी दृष्टि से देखता रहा। टेंशन नाट वाली स्टाइल में उन्होंने कहा अब मैं दूसरी
शादी करने जा रहा हूं नहीं तो समोसे बेचना मेरा काम नहीं मेरे पिताजी लखनऊ में
हलवाई की दुकान चलाते हैं मैं कक्षा 5 पास करके उसका मैनेजर और खजांची दोनों पद संभाल रहा हूं किंतु परिस्थिति आ गई है कि मुझे
यह सब करना पड़ रहा है। इसके बाद उन्होंने अपनी कहानी मुझे सुनाई जो उन्हीं के शब्दों में नीचे लिखी है।
"मैं उन दिनों
स्कूल जाया करता था तब पिताजी का भय था ।कक्षा 5 तक पढ़ा मास्टर जी को अपनी दुकान से मिठाई के 2 किलो भार से तोल दिया करता था , और उनके सम्मान में दो चार
वाक्य फेंकते हुए कहता गुरुजी आपके
आशीर्वाद से यह प्रसाद में लाया हूं। कृपया इसे स्वीकार करने की कृपा करें ।महान दया
होगी। इसका असर इस कदर होता की देखते ही देखते गुरुदेव अपने
बाएं हाथ का प्रयोग करते उनके कथा अनुसार छात्रों को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण
करना उनके बाएं हाथ का कार्य था अब आप स्वयं ही अंदाजा लगा सकते होंगे गुरुदेव
बाएं हाथ के कितने बढ़िया खिलाड़ी थे।
गुरुदेव की कहानी दो गुरुदेव जाने।
गुरुदेव की कृपा से कक्षा 5 के परीक्षा फल
घोषित हुए परिणाम सुनिश्चित था । मैं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो गया। अबकी बार गुरुदेव सीधा पिताजी
के दुकान में आ धमके
और हमारी सारी पोल खोल दी पिताजी ने बड़े सम्मान के साथ 2 किलो के मिठाई का
पैकेट बनाकर गुरुदेव के चरण कमलों पर अर्पित कर दिया गुरुदेव सदा मिठाई खिलाते रहो का आशीर्वाद दिया।उनके इस
आशीर्वाद की वजह से हमारे जीवन में मिठाई की कभी कोई कमी नहीं हुई। धन्य है एसे
गुरुजी और उनका आशीर्वाद । इसके साथ पिताजी
ने 2 किलो मिठाई वाली शिक्षा का अंत कर दिया।हमने भी सोचा चलो
स्कूल जाने से प्राण छूटे। इसके बाद गुरु जी के आशीर्वाद और अपनी मेहनत के बल पर
हमने अपनी चार बड़ी बहनों का विवाह संपन्न करवाया
एक बात और मेरा छोटा भाई तुम्हारी
तरह विश्वविद्यालय की पढ़ाई कर रहा है भारतीय सेना में अफसर बनना चाहता है। इस तरह
भाई मैं अपने सभी कर्म पूर्ण करके सइलेंट मोड में आ गया था तभी मेरे घर
वालों ने अति रूपवती, गजगामिनी, मृगनयनी, कामिनी, मनोहारी, मृदुभाषी स्त्री से मेरा विवाह करा दिया जो
मेरे जीवन में घन घोर ज्वार भाटा लेकर
आया। कहते हैं विवाह सौभाग्य लेकर आता है किंतु मेरे लिए दुर्भाग्य लेकर आया मेरी
पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी जो भी धन था, मैंने उनके इलाज में लगा दिया किंतु उनको बचा ना पाया
यही मेरा दुर्भाग्य था।मुझे आज भी याद है उन दिनों वह घर का सारा काम करती थी मेरे
साथ बैठ कर मेरी सेवा भी करती थी मेरे
सोने के बाद वह पढ़ाई भी करती थी। बस किसी
तरीके से मैं एम० ए० कर लूं आपको भट्टी के
पास बैठना नहीं पड़ेगा मैं प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका बन जाऊंगी ऐसा कहते हुए
उसकी आंखों में एक विशेष चमक होती है ।जिसका मैं
वर्णन नहीं कर सकता हूं। और न जाने कैसे कैसे सपने बुनती थी। बड़ी भोली थी ।हम
शादी के पहले कभी नहीं मिले थे सच तो यह है मैं उसे काबिल ही नहीं था।वह इतना
ज्यादा पढ़ी लिखी थी और मैं अनपढ़।
किंतु उसने
मुझसे विवाह करना स्वीकार कर लिया था बिना किसी दबाव के । मुझे इतना प्रेम किया उसने और ना ही अपनी पढ़ाई
की धौस जमाई ।वास्तव में वह कोई देवी थी।
किंतु मेरे भाग्य में सुख कहां है? मैंने उसका डॉक्टरी
परीक्षण करवाया उसको कैंसर निकला। इस
गरीबी में हमसे जो बन पड़ा हम उनका
इलाज करवाया किंतु हम उनको बचा ना सके। एम०ए० का रिजल्ट आ गया लेकिन उनकी मौत के बाद। वह प्रथम श्रेणी से पास
हुई थी लेकिन कौन खुशी मनाएं? मैं तो जैसे पागल ही हो गया था ,एक अंधेरे कमरे में बंद रहने लग गया था।ना कुछ खाना ना बोलना बिल्कुल शांत शायद अपनी
मृत्यु की प्रतीक्ष कर रहा था ।लेकिन मैं कोई
नचिकेता तो हूं ही नहीं जो यमराज
मुझ पर प्रसन्न हो जाए।सो मैं आज तक जीवित हूं । घर में एक मां को छोड़कर सभी मुझे
इस पागल समझने लगे हैं। लगभग सभी ने मुझे त्याग दिया है मेरी हालत बदतर हो रही है। अब मै इस शहर में समोसे बेचने आया हूं क्योंकि मैं आज भी अपने आपको अपनी पत्नी का अपराधी
समझता हूं।लेकिन घर वाले मेरी शादी करना चाहते हैं और मैं उनकी बात काट नहीं सकता
आखिर मैं स्त्री सुख से वंचित क्यों रहूँ?बिना पत्नी के
इतना बड़ा जीवन मैं कैसे कट सकता हूं। इसलिए घर वालों के कहने पर मैं विवाह करने जा
रहा हूं तुम्हारी पुस्तके देखकर मुझे अपनी
पहली पत्नी की सुंदरता शालीनता और मृत्यु
की चित्कार के सभी दृश्य आंखों के सामने आ
गए और उसकी स्मृति जाग गई इसलिए आंखों से आंसू निकल आए आंसुओं पर किसी का जोर नहीं
चलता लेकिन विवाह पर तो चलता है। इसलिए
करने जा रहा हूं |"इतना कहने के बाद वे चुप हो गए।मैंने भी उनकी हां में हां
मिलाया और उनकी दूसरी शादी पर प्रश्न करना उचित न समझा।परंतु इस तरह के लोगों को क्या
कहा जाए यह जरूर सोचता रहा?
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