शुक्रवार, 8 मई 2020

बाढ़ का पानी


                  Flood situation worsens in Andhra Pradesh - The Hindu                                      
सावन की अंधेरी रात में बारिश हो रही थी , चमोली अपनी टूटी खाट में लेटी थी घनघोर बरसात में भी उसका  हृदय जल रहा था  जिसकी आग ने  उसके शरीर को अब तक गरम रखा था| ना जाने कितनी बरसातों ने उस पर आक्रमण किया था परंतु यह बरसात बड़ी ही हृदय विदारक थी अभी 3 बरस भी नहीं बीते थे |चमेली के विवाह को और उसके पति की मृत्यु हो गई थी |चमोली  को अपने विवाह के दिन याद आ गए किस प्रकार रामदीन उसको लेने के लिए बरात लेकर आया था शादी की हर रस्म में चमोली  दुनिया की नजर बचाकर रामदीन को प्रेम पूर्वक देख लिया करती थी |तब एक जादू की तरह सिहरन उसके शरीर में हो जाती थी| पर शादी के बाद जब रामदीन खेत पर काम करने के लिए जाता तो वह कह  उठती सुनो आज जल्दी आना शायद इस वाक्य में कोई गुप्त संदेशा छिपा होता था । खेती का काम करके जब शाम को रामदीन घर आता तो फसल अच्छी होने का अनुमान लगाता तुम भी ना कितनी मेहनत करते हो महाजन का कर्ज अगले साल चुका देना ।क्या? तुमको मेरी याद नहीं आती तुम भी ना कितने  निर्दई हो रामदीन को चमोली की प्यारी फटकार अच्छी लगती थी ।दोनों देर रात तक आपस में बतियाते रहते और दोनों का प्रेम परिपक्व होता रहा
2 वर्ष 2 दिन की तरह व्यतीत हो गए पता ही नहीं चला खेती की हालत पटरी से नीचे उतर गई थी। जिसको फिर से पटरी पर लाने के लिए अथहा  श्रम की आवश्यकता थी।  उधर महाजन का व्याज  बाढ़ के पानी की तरह बढ़ रहा था।  इधर अधिक श्रम करने के कारण रामदीन भीतर से टूट चुका था अब उसके चेहरे से खुशी गायब हो चुकी थी।  पर उसकी पत्नी के स्वभाव को  पूर्ववत बना रहा पत्नी ने सोचा शायद पति किसी और से प्रेम करने लगे हैं। हर बात पर संदेह करना  उचित नहीं होता,  ऐसी मानसिकता वाली चमोली ना थी।  उसका संदेह दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था अब उसके व्यवहार में पहले वाली बात ना रही प्रेम के स्थान पर कटुता  व्याप्त हो चुकी थी।
कलह  का जन्म हो चुका था कलह ने अपने पति दुख को भी बुलावा भेज दिया शीघ्र ही दुख पहुंचा फिर क्या था छोटी-छोटी बात पर झगड़ा हो जाता था। कोई भोजन ना करता कई कई दिन तो बातचीत भी ना होती जीवन अपनी गति से आगे बढ़ रहा था । रामदीन चमोली तुम मुझसे नहीं मेरे धन से प्रेम करती हो । इसलिए तुमने मुझसे तलाक की बात के लिए बुलाया है बोलो यह सत्य है ना
 चमोली ऐसी बात नहीं है
 रामदीन ऐसी बात नहीं थी तुमने अपने जेवर बेचकर महाजन का कर्ज क्यो ? चुकाया ,क्या?  तुम को मेरे ऊपर विश्वास नहीं था कि  मैं उसका कर्ज  चुका पाऊंगा बोलो चमोली।
चमोली नहीं ऐसी कोई बात नहीं है
रामदीन “अगर ऐसी बात नहीं है तो कैसी बात है?”
 चमोली देखो घर की हालत बहुत ही नाजुक है मुझे कुछ दिनों के लिए मेरे मायके भेज दो रामदीन कभी नहीं मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूंगा चमोली अगर तुम मुझे नहीं जाने दोगे तो मैं स्वयं चली जाऊंगी रामदीन  जाओ मगर फिर वापस मत आना
चमोली ने सोचा अभी गुस्से में हैं कह रहे हैं घर की हालत खराब है चलो मां के घर  कुछ आर्थिक फायदा  होगा  ही और अपने घर से चल  निकली
रामदीन उसे  जाता  देखता रहा जीवन में प्रेम का यह प्रतिफल रामदीन तुमने इस औरत के लिए क्या-क्या कष्ट नहीं सहे और आज जब तुम गर्दिश में हो तो यह तुमको छोड़कर चली गई अब तुम्हारा कौन है यह सोचकर जब रामदीन बहुत दुखी हुआ तो  बकरी बांधने वाली रस्सी से फांसी लगा ली । आज एक मेहनती किसान ने अपने आप को कर्ज मर्ज और फर्ज से सदैव के लिए मुक्त कर लिया था। यह असमय मृत्यु ही उसके परिश्रम का प्रतिफल था।
हां तुम्हारा परिश्रम देखने वाला यहां कोई नहीं है कौन देखेगा तुम्हारा यह  परिश्रम उसकी मृत्यु पर रोने वाला भी कोई नहीं यह था एक अन्नदाता का अपमान पीड़ा   दुख और कष्ट  और अपमान का अंत इतना मार्मिक होगा कल्पना से परे
कौन  ? जाने दुर्भाग्य ने  रामदीन को ही चुन लिया था
दूसरी सुबह देर तलक जब रामदीन का दरवाजा नहीं खुला और ग्राम वासियों ने जब जबरजस्ती उसको तोड़ा तो छत पर रामदीन का शव लटक रहा था यह शायद बलिदान था  कर्म पथ का बलिदान!
“बेचारा बड़ा  परिश्रमी  था मेरा सारा कर्ज  चुका गया “महाजन ने कहा
अब इसका अंतिम संस्कार कौन करेगा पंडित जी का महत्वपूर्ण प्रश्न था
ग्राम वासियों ने उसका अंतिम संस्कार करने के लिए धन प्राप्त करने हेतु उसके घर की तलाशी लेने लगे  जिसमें उनको एक बकरी ही प्राप्त हो सकी। जिसे को बेचकर ग्राम वासियों ने उसका अंतिम संस्कार किया।
गंगा घाट पर उसी की चिता को आग देने वाला व्यक्ति की तलाशी शुरू हुई इसके लिए कोई तैयार न  हुआ रामदीन का  कोई सगा संबंधी नहीं था अंत में ग्राम प्रधान ने उसकी चिता को अग्नि दी दो व्यक्ति अंतिम बार एक-दूसरे के आमने-सामने थे एक बोल सकता था दूसरा नहीं बोल सकता था एक दुखी था दूसरा भावशून्य था ग्राम प्रधान ने अपने गांव के बेटे को मुखाग्नि दी यह बात  जंगल की आग की तरह फैल गई किसी ने आलोचना की किसी ने समालोचना पर बहुत ही कम लोग यह जान सके यह मित्रता की भावना थी जिसको   मृत्यु  भी अलग ना कर सकी जब चमोली को यह बात पता चली तो वह फूट-फूट कर रोती रही अखिर वह खुद भी अपनी अपराधी थी इसको उसका अंताकरण स्वीकार कर चुका था । शायद उसके अंदर से ही बाढ़ आ रही थी जिसका पानी उसी को ही डूबा डालने में सामर्थ था




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