सुभाष ने विवाह में सातवीं फेरे की रस्म पूरी की और खुशी- खुशी पत्नी के साथ गांव वापस लौट आया |सुभाष की बहन बुद्धिमती ने
उस दिन
अच्छा नेग दिया और यह बताया कि उसे आज बहुत खुशी प्राप्त हुई सुभाष के माता पिता
स्वर्गवासी थे सुभाष एक सीधे-साधे युवक से एक अधेड़ व्यक्ति में तब्दील हो चुके थे
मतलब उनके जीवन के पचास वर्षों में अनेक
अनुभव प्रप्त हुए थे।
उसके बाद भी बुद्धिमती
उसे एक साधारण बालक की बुद्धि वाला व्यक्ति मानती रही। सुभाष के माता-पिता ने लगभग
3 किलो चांदी
1 किलो सोना
अपने पुत्र के लिए छोड़ा था । वास्तव में
सुभाष जैसा बहन भक्त को पाकर बुद्धि मती को जो प्रसंता प्राप्त होती थी वह प्रसंता
किसी मिठाई के शौक़ीन व्यक्ति को मिठाई
प्राप्त होने से ही मिल सकती थी पत्नी अपने पति के प्रेम से पीड़ित थी । कारण थी
तथा घर में चार पुत्रियों को शादी योग्य अवस्था में पहुंच जाना सुभाष को कभी भी
अपनी जिम्मेदारियों का एहसास ना हुआ उसे अपनी बहन पर अखंड विश्वास था।
पत्नी से भी ज्यादा जिस औरत पर वह
विश्वास करता था वह उसकी बहन बुद्धिमती थी खैर अब
क्या कहा जाये ?
लोग सुभाष को देवता मानते थे और वो
गलत भी नही थे, क्योकि उसने अपनी सारी पूंजी जिसमे जमीन घर और जेवर
को बेच कर प्रप्त मुद्रा समिल थे सब लेकर वह बहन के घ्रर को निकल पडा ।
बहन अगर मुझ पर कोई विपदा
पड़े तो यह धन मुझे वापस कर देना
सुभाष ने कहा अरे भैया तुम मेरे तरफ से निश्चिंत रहना आखिर मैं आपकी बहन ही हूं
बुद्धिमती ने समझाया कुछ दिनों में सुभाष की सारी संपत्ति बुद्धिमती की हो चुकी थी इस घटना ने सबसे ज्यादा
सुभाष की पत्नी को आहत किया था जिस किसी की चार पुत्रियां हो और उसकी अपनी संपत्ति
किसी और को दे दी जाए उस व्यक्ति की अवस्था ऐसी हो जाएगी जैसे मछली को पानी से निकाल
किनारे पर रख दिया जाए सुखी जीवन जीने वाले सुभाष के परिवार को अपनी लड़कियों का
विवाह कैसे करना होगा ? यह प्रश्न सालो
उस गाव कि हवा मे उडता रहा जिसका अंतिम सहारा भी छीन लिया गया हो उसका क्या ?
मां बेटियों ने अब गरीबी को प्रगट करना शुरू कर दिया था शायद वह अब दिखाना चाहती थी कि कैसे गरीब लोग जीवन यापन
करते हैं आखिर में जब वे बुद्धिमती के गांव की ओर प्रस्थान किया तो पता चला कि बुद्धिमती को इस बात की सूचना मिल गई थी तो भाई
की हत्या करवा दी क्योंकि उसका सारा धन उसे प्राप्त हो जाए यह स्वार्थ की पराकाष्ठा थी फिर भी उसका मन नही भरा
तो यह प्रचार करना शुरू कर दिया उसकी सगी
भाभी ने भैया को मार डाला है । सुभाष कि पत्नी को लोग हत्यारी समझने लगे और उसका जीना दूभर हो गया अब न्यायालय
में जा कर वकील करना सुभाष कि पत्नी के लिए
बहुत मुश्किल था कारण था धन का अभाव ।
अंत में सुभाष की पत्नी ने अपनी ननद के गांव
में जाकर एक पंचायत बैठाई इसमें यह निर्णय लिया जाए किंतु पति की हत्या करने वाली पत्नी कि छवि उसकी ननद अपने गाव मे पहले बना चुकी थी जिसके कारण
पंचायत ने उसका साथ नही दिया।
वहां पर उसने अपना सर ननद के पाव में रख दिया अब मेरी
इज्जत आपके हाथ में है मुझे तो रहम करो जैसे शब्दों का बुद्धि मती पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ा एक तरफ स्वार्थ दूसरी तरफ अधिकार था एक तरफ जिम्मेदारी दूसरी तरफ बिना स्वार्थ के अधिकार , कोशिशों के बाद उसकी पत्नी को अवश्य कुछ धन प्राप्त हुआ किंतु वह बहुत
कम था इसके अलावा कुछ भी ना मिला पुलिस को
रिश्वत खिलाकर बुद्धिमति ने केस को फाइल
में दर्ज नहीं होने दिया नहीं हो कुछ दिनों बाद के सुभाष की साइकिल बुद्धिमति के गांव के पास मिली बुद्धिमति ने कहा अगर भैया
यहां आकर अपना धन मांगे तो मैं जरूर दे दूंगी अगर नहीं आए तो मैं नहीं दूंगी।
इस बात ने अपना प्रभाव छोड़ा कि
सुभाष के गांव में आने वाले हर अधेड सज्जन
से सुभाष कि पत्नी अपना धन के लिए कहने लगी
मां-बाप के अभाव में जवान
लड़कियों को मेहनत मजदूरी करनी पड़ी वर्षों तक लोग पागल औरत से बचने
का प्रयास करते रहे यही अखंड विश्वास का
प्रतिफल था बुद्धिमती जब भी अपने भाई की लड़कियों की दशा को देखती थी तो यह कहने
से अपने को रोक नहीं पाती यह दशा इनके पिता ने इनकी बनाई है मैं तो अपने वचनों का पालन
कर रही हूँ , प्राण जाए पर वचन न जाए इसपर बुद्धिमती को अखंड विश्वास था ।
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