शुक्रवार, 18 मार्च 2022

सच होते सपने ! एक आंचलिक लघु उपन्यास भाग 1 लेखक प्रदीप द्विवेदी



पंडित श्याम मनोहर शास्त्री जिनका आज विवाह संस्कार संपन्न हुआ है इन्होंने अपने नाम को सार्थक बनाने का प्रयास किया पंडित जी को अपने नाम के आगे  पंडित एवं शास्त्री का प्रयोग किसी आभूषण से कम नहीं लगता था परंतु वह केवल दसवीं पास थे ये उप्माये  केवल गांव वालों की उदारता का परिणाम थी।  कुछ भी हो शास्त्री जी गांव के सम्मानित पुरुष है भाषा और रीतियो के प्रकांड विद्वान है।  जिनका उन्होंने समय-समय पर प्रदर्शन किया? शास्त्रों में वर्णित उदारता उनको छु भी ना गई थी फिर भी लोग उदार दाता मानते थे कारण अज्ञात है पंडित जी आज मिलन बिंदु पर उपस्थित थे 

क्या कहने  पत्नी भी उनको उनके भाग्य व  स्वभाव के अनुरुप  मिली थी पत्नी ने उनसे रस्मो  के अनुसार कुछ मांगा आप मुझसे वादा कीजिए कि आप एक माह में अपने परिवार से अलग गृह निर्माण करेंगे प्रिय मैं तुम्हारे रूप में एक क्या अनेक ग्रह निर्माण कर सकता हूं मैं वादा करता हूं कि परिवार से अलग हो जाएंगे फिर क्या था दोनों ने ही जीवनरस सुधा का  पान किया  

शास्त्री जी के परिवार में दो बड़े भाई भाभी भतीजे और भतीजी थी शास्त्री जी के परिवार में उनकी  बुजुर्ग मां थी जिन्हें वह  निहायत गंदी वह खराब वस्तु समझते हैं और उनसे बोलना नहीं चाहते थे उनका नाम था दिव्यावती जोकि अत्यंत वृद्ध थी  शास्त्री जी के पिता स्वर्गवासी थे अब मां बच रही थी भाइयों में इतनी सामर्थ्य न थी मां को अपने हिस्से में रख सके एक छायादार वृक्ष की छाया में उनको रख सके  जो उन्होंने इतिहास में रोपा  था आज अपने लगाए वृक्ष के फल खाने का समय आया तो वृक्ष ने साफ इंकार कर दिया । बेटा मैं मैंने तुम तीनों को अपने पेट में एक नहीं बल्कि 9 महीने तक  रखा खुद न खा कर तुम लोगो को खिलाया और  न जाने क्या ? क्या? कस्ट सहे  परंतु आज तुम तीनों मुझे त्याग दोगे  मा ने  चौकते  हुए पूछा मां हम लोग तुम्हारा त्याग नहीं कर रहे हैं  केवल तुम्हारे बंटवारे के लिए सोच रहे हैं किस प्रकार तुम्हारा बंटवारा किया जाए मां यह सब सुनकर अवाक रह गई उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उसका भी बंटवारा हो जाएगा शास्त्री जी ने अपनी बुद्धिमता का प्रदर्शन करते हुए कहा कि भाइयों मां को 4 गुना 3 बराबर 12 का सूत्र लगाकर हल कर  दिया  हम में से प्रत्येक भाई के साथ मां चार महीने रहेंगी  फिर दूसरे के पास ट्रांसफर कर देंगे फैसला सर्वसम्मति से पारित हुआ लोकतंत्र का जमाना था विरोध बहुमत में ना हो तो विरोध मम्य नहीं होता है|  परिवार एक में था तो कुछ लोगों के निकम्मेपन   का बोझ भी पेट भरने के कार्य में सक्षम था परंतु अलग होते ही तीनो भाई भूखे मरने लगे यद्यपि उनके पास खेती लायक जमीन  की कमी न थी यह वही जमीन थी जिस पर पहले अधिक अनाज दालें पैदा होती थी परंतु बंटवारे के बाद ऐसा लगता था जैसे सब कुछ समाप्त हो गया कहा भी गए हैं जहां सुमति तहां संपति नाना जहां कुमति तहं बिपति निधाना बंटवारे के बाद तीनों भाइयों के दिल भी बट गए कोई किसी को अपने खेतों में से  पानी नहीं निकालने देता था  तथा जिससे प्रति की सिंचाई व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न हुआ जो फसलों के लिए विनाशकारी था गरीबी में भुखमरी को निमंत्रण भेज दिया भुखमरी ने लाचारी को  लाचारी ने बीमारी को बीमारी ने  मृत्यु को  जो मानव मात्र को ईश्वर का दिया हुआ शस्त्र है हर बीमारी  की रामबाण औषधि है लाचार मानव का उपचार  है  खैर कुछ भी हो शास्त्री जी ने खूब उन्नति की धन के  मामले में नहीं भाई संतान की मामले में उनके तीन  पुत्र और चार पुत्रियां थी जिन   संतानों की मृत्यु हो गई उनकी संख्या ज्ञात है क्योंकि शास्त्री जी का मत था घर की बात घर में रहे तो ज्यादा अच्छा है जीवन निर्वाह फिर से आगे बढ़ रहा था या यूं कहें कि जैसे मां गंगा के सदियों से अपने मार्ग प्रभावित है उसी प्रकार शास्त्री जी का जीवन भी प्रभावित था शास्त्री के तीन पुत्र  में काम्य सौम्य व  प्रभात हैं उन की पुत्रिया   पुष्पा किरण सुधा व रश्मि है । शास्त्री जी की पत्नी सुगंधा पुत्रों से प्रेम व पुत्रियों से नफरत करती थी और ऐसा करना कानूनी रूप से उनके लिए सही था वह मानती है उनके अनुसार बेटी बीमारी थी बेटा सुख समृद्धि की बखारी थी सुगंधा अपने पति व पुत्रों पर अत्यधिक प्रेम वर्षा करती थी। पुत्रियों पर सदा उनका शिव के तृतीय नेत्र का  सा प्रकोप रहा धन्य है वह देश गांव प्रदेश जहां इस प्रकार की भेद नीति  प्रयोग में लाई जाती है निसंदेह शास्त्री जी विद्वान थे क्योंकि उन्होंने अपनी धर्मपत्नी का साथ दिया था गरीबी का प्रकोप था घर में भोजन की आवश्यकता थी परंतु तन ढकने के लिए वस्त्र भी आवश्यक है दोनों में केवल एक ही आवश्यकता पूरी हो सकती थी ऐसा सुगंधा  शास्त्री का मत  था । काम्य  विद्या अध्ययन सौम्य  तकनीकी कार्य में तथा प्रभात चोरी व बदतमीजी कला में पारंगत थे इसमें संदेह नही है अम्मा हम अभी और पढ़ना चाहती हैं सामवेत स्व्र्र उभरा   पढ़ लो या खा लो या पहन लो सुगंधा ने कहा भैया तो पढ़ते हैं हम भी बढ़ेंगे लड़कियों ने कहा तुम लोग अपने पति के घर में पढ़ना पढ़ाना शास्त्री जी का नपुंसकता  उत्तर निकला

 क्योंकि शास्त्री जी के  सामने कोई भी अपनी जबान नहीं खोल  सकता था लिहाजा  एक सन्नाटा पूरे वातावरण में फैल गया शायद बुत   तो नहीं बोला करते हैं  बोलने के लिए जीवंत लोग चाहिए जो लोग अन्याय के खिलाफ सिर झुका दे इंसान की श्रेणी  में नहीं आते संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है  चारों पुत्रीयो कन्या पाठशाला  से निशुल्क शिक्षण प्राप्त किया इसके उपरांत पुष्पा व किरण ना पढ़ सके उनकी शादी का प्रस्ताव पारित हो चुका था निसंदेह यह प्रस्ताव किसी भी न्यायालय के आदेश से अधिक महत्वपूर्ण था ऐसा सुंगधा का मत था।

 

 

शनिवार, 5 मार्च 2022

जहरीला सावन

 

श्री बी एन वर्मा काशीपुर गांव के माने जाने किंतु अनपढ़ मिस्त्री थे जी हां गांव की भाषा में मकान बनाने वाले को मिस्त्री ही कहा जाता है लिहाजा अब मिस्त्री थे तो घर तो अच्छा बनाएंगे ही घर उनका बहुत अच्छा बना है घर में सब कुछ खाने पीने का है किसी चीज कि कोई कमी नहीं थी किंन्तु घर मे आए दिन झगड़ा होता था इससे मोहल्ले वाले बहुत परेशान रहते थे गांव के सभी लोगों ने पंचायत बैठा कर उनके घर वालों को कई बार समझाया लेकिन वह लोग  नहीं समझे  कारण था घर में टीम  3 बहुएं थी 4 बेटियां थी भरा पूरा परिवार था पर खर्चा करना कोई नहीं जानता था बीएन वर्मा जी को  शुगर हो गया था अब उनमें काम करने का दम ना रहा वृद्धावस्था हो गई फिर भी जैसे तैसे करके घर के काम करते थे अब मेहनत मजदूरी में उनका हाथ अटक गया था फिर भी बहू  और लड़के उनको कुबेर समझने लगे थे पिताजी ने जीवन भर की कमाई रखी हुई है हमको कुछ नहीं दे रहे हैं यह समझ कर एक दूसरे से लड़ा करते थे जबकि वह अपने इलाज कराने में पत्नी  के इलाज कराने में बच्चों को पढ़ाने उनका सहारा धन खर्च कर चुके थे और उनके शब्दों में कहें तो मौत का इंतजार कर रहे हैं मगर कमबख्त मौत भी नहीं आ रही बहुत परेशान हो उनके मोहल्ले में हर साल बारिश होती थी बारिश में  सावन सावन भी आता था और हर साल उनके मोहल्ले में कोई ना कोई मर जाता था वह अक्सर कहा करते यह सावन किसी दिन हम को ले डूबेगा लेकिन उनकी पत्नी सुपारी काटते हुए बोलती थी तुमको नहीं मुझको ही ले डूबेगा रोज की  हाय हाय से  थक गए हैं तंग आ गए हैं  बर्बाद हो गए हैं  हर साल पिछले 5 सालों से जहरीला सावन में गांव का कोई न कोई मर ही जाता था मरने की वक्त सभी के लक्षण  एक जैसे होते  थे  पूरा शरीर बिल्कुल काला हो जाता था ऐसा लगता था कि उनकी मौत विषपान  से हुई है अथवा किसी जहरीले सांप ने काट लिया और जब लोगों को कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता तो वह कहते इसकी मौत जहरीला  सावन से ही  हुई है  बीएन की पत्नी  बहुत ही सहृदय महिला थी ऐसा कुछ लोग मानते थे कारण अज्ञात है

ऐसे ही एक  दिन फिर लड़ाई हुई है और उन्होंने पूरा दिन  कोई भोजन नहीं किया  इसके बाद रात में सोने गए ना खाना खाया ना ही कोई जीव जंतू  उनके चारपाई  के पास आया किंतु सुबह जब लोगों  उनको मृत अवस्था में देखा तो  तो उनका भी शरीर काला पड़ चुका था वैसे ही मौत हुई थी जैसी अन्य लोग सावन में लोग मरते थे लोगों ने मान लिया इनको भी  जहरीला सावन निकल गया है कौन जाने परिवार से दुखी होकर  जहर पीकर  आत्महत्या की थी  बेचारा  सावन बिना फालतू में ही जहरीला हो गया था ।

इस बात को कहने वाला वहां कोई भी नहीं था सब लोग चुपचाप आंसू बहा रहे थे

  लेकिन  बीएन वर्मा जी चुपचाप बैठे सोच रहे थे


सावन जहरीला  नहीं है लोग जहरीले  हैं सावन तो बिना बात के  ही बदनाम हो गया है।

बड़े ही दुखी ही  हृदय से वह अपनी मृत पत्नी को  

अपलक देखते रहे जब तक लोग उनकी अर्थी उठा कर नहीं  ले गए…..









शनिवार, 18 जुलाई 2020

hindi kahani

राम बोध  से मेरा संपर्क कब हुआ इतना मुझे ठीक-ठाक याद नहीं है। किंतु उनसे मिलने का प्रयोजन प्रत्येक व्यक्ति का लगभग एक सा ही रहता है इस कारण मेरा भी  प्रयोजन वैसा ही था बात कुछ यूं है।  राम बौद्ध जी नल और ट्यूबवेल के विशेष कारीगर है। आसपास के 71 कोश मे उनकी तूती बोलती थी। बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा उनके हाथ के नल का पानी पीकर ही अपना जीवन गुजार पाता था। अर्थात क्षेत्र वासियों के लिए वह पूजनीय थे, सरकारी रजिस्टर में उनकी जाति के आगे हरिजन लिखा जाता था इसका कारण अज्ञात है।
कुछ पुरातन मानसिकता वाले व्यक्ति उनके हाथ का जल पीना उचित नहीं मानते थे किंतु फिर भी नल उन्हीं से ही लगावते थे, नल लगवाने के मामले में मशीन के बाद लोग उन्हीं का जिक्र करते हैं बिना उनके पेयजल उपलब्ध नहीं था ऐसा लोगों का मत था | क्षेत्रवासियों की पेयजल की समस्या अकेले उन के दम पर ही निर्भर थी। जब  क्षेत्र का कोई भक्त उनसे कहता," आप कि जोड़ का कारीगर ना इस इलाके में दूसरा कोई है ना होगा  तो वे बहुत प्रसन्न होते और पूरे हर्षोल्लास के साथ शानदार तरीके से अपनी देशी मूछों पर जोरदार ताऊ देते और कहते मेरे जीते जी कोई दूसरा इस इलाके मे राज नहीं कर सकता है अगर कोई करेगा भी तो वह मेरा पुत्र होगा"।इस बात को  झूठलाने  का साहस आज तक कोई दूसरा कारीगर नहीं कर सका  इसलिए  राम बोध जी अपने क्षेत्र के अपराजय योद्धा थे।
गांव में विधवा विवाह कि कोई परंपरा  नहीं थी आज उनकी बड़ी बहू विधवा हो गई बड़े लड़के को सांप ने डस लिया था लोगों ने कहा सब उसकी पत्नी  रागिनी का किया धरा है किंतु राम बोध नहीं माने उन्होंने अपने बड़े  लड़के की विधवा बहू की  अपने छोटे लड़के से शादी कराने की भीष्म प्रतिज्ञा कि  मित्रों रिश्तेदारों और गांव वालों ने समझाया डराया और धमकाया जो उनको  नागवार गुजरा। पंचायत में उनका हुक्का पानी बंद कर दिया गया उन लोगों ने उनसे काम कराना बंद कर दिया।वे अंदर से तिलमिला उठे । पहले उन्होने सोचा आत्महत्या करके जीवन लीला समाप्त कर ली जाए किंतु दायित्वों के बोझ के आगे वे ऐसा ना कर सके । राम बौद्ध जी ने गांव के सभी गणमान्य लोगों को बुलाया और कहा मैंने गांव की जीवन भर सेवा की है अगर आप लोगों  मुझसे मिलने नहीं आए तो मैं जीवन त्याग दूंगा और अभी आत्महत्या कर लूंगा गांव मे सभी रामबोध जी को जानते थे सभी  जिस हाल में थे उसी हाल में दौड़े क्योंकि वह लोग किसी की हत्या का बोझ अपने उपर  नहीं ले सकते थे। घंटों वाक युद्ध चला अंत में  राम बोधजी ने अपने  छोटे लड़के से  और विधवा बहू से पूछा क्या तुम दोनों शादी कर सकते हो ?दोनो ने  हां मे सिर हिलाया उन्होंने कहा लो फैसला हो गया और गांव में बड़े मंदिर में जाकर दोनों की शादी करवा दी इस तरह गांव के सभी लोगों ने उन्हें  बागी घोषित कर दिया  और सदा सदा के लिए गांव निकाला का आदेश दिया|  वे मुस्कुराए और नवविवाहित बेटे बहू  को आशीर्वाद देकर गांव से बाहर निकल गए इस घटना की सालों बाद भी वे गांव ना लौटे।  गांव वाले  आज भी उसे बागी कहते हैं लेकिन अब परंपरा बदल गई  है विधवा विवाह हो जाते हैं लेकिन उस बागी की वजह से , मरने के बाद वहां एक मंदिर बना जिसे बागी बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है गांव की निस्सहाय विधवा महिलाएं वहां जाकर अपने जीवन की मंगल कामना करती है। ऐसी मान्यता है की बागी बाबा उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण करेंगे।

बुधवार, 20 मई 2020

प्रयास



  Two Girls Doing School Worksदिव्य कुमार  को पूरा विद्यालय सिरफिरे अध्यापक के रूप में जानता था कारण बस इतना ही था | वह हरकतें  सिरफिरे वाली   करते थे ।  दिव्य कुमार जी हिंदी के अध्यापक  ठहरे लेकिन उनकी बातों से चंद्रशेखर आजाद राम प्रसाद बिस्मिल राणा सांगा की तीव्र अनुभूति होती थी बच्चों के बीच वह अत्यधिक सम्मानित  थे, इसका कारण अज्ञात है। परीक्षा में छात्र उनको उदार दाता मानते थे शिक्षा में भाग्य विधाता दिव्य कुमार दूसरे सरकारी अध्यापकों की तरह  ही थे किंतु व्यवहार में सबसे  अलग खैर जाने दीजिए अब इन बातों में क्या रखा है
जिसका नाम इतना दिव्य हो उसका  कार्य तो दिव्य होगा ही लोग ऐसा ही कुछ लोग उनके बारे में कहा करते थे। दिव्य कुमार जी को अपने देश पर गर्व था  , देश को  उन पर गर्व था या नहीं यह देश जाने।
जब से इस इंटर कॉलेज में हिंदी के अध्यापक बन कर आए थे कुछ ना कुछ अजीब घटित हो ही  जाता था लोग उस मास्टर को  भाग्यशाली समझते थे।।
दिव्य कुमार जी इंटरमीडिएट साहित्य के  कक्षा अध्यापक  ठहरे साहित्य के  मानीटर को बुलाया और अपनी कक्षा में  व्यायाम की अतिरिक्त  कक्षा की घोषणा कर दी बच्चे खुश हुए चलो पढ़ाई के साथ मौज मस्ती का भी जुगाड़ हो गया ।उधर  प्रधानाचार्य जी ने दिव्य को अपने कार्य में हस्तक्षेप करते हुए मान लिया वे  गुस्से से लाल हो गए  शीघ्र  उन्होंने दिव्य कुमार को कार्यालय में हाजिर होने का आदेश दिया आदेश  लेकर चपरासी उनके  पास पहुंचा।
 प्रधानाचार्य जी पुराने विचारों के ठहरे दिव्य कुमार जी क्रांतिकारी अध्यापक ठहरे टकराव सुनिश्चित था । विजय अथवा पराजय से ऊपर उठकर दोनों ने लंबे समय तक वाक युद्ध किया मानो  दिनकर जी की रश्मिरथी प्रधानाचार्य जी के कार्यालय में सजीव हो उठी हो जब बात बहुत बढ़ गई साथी  अध्यापकों ने आकर कहा  प्रधानाचार्य जी अगर मास्टर साहब पढ़ाना चाहते हैं तो पढ़ाने दीजिए अगर व्यायाम कराना चाहते हैं तो कराने दीजिए  इससे तो  हमारे विद्यालय का नाम ही होगा  आपको कोई हानि नहीं होगी  एक  तरीके से आपका ही नाम होगा। फिर आप असंतुष्ट क्यों है?
 अरे भाई हमारा यह  प्रयोजन नहीं था आप गलत समझ रहे हैं ।अरे भाई हम प्रधानाचार्य हैं विद्यालय की सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी होती है। अगर यह विद्यालय की सुरक्षा की जिम्मेदारी की गारंटी ले तो हम इन्हें  यह कार्य   सौंप सकते हैं ।इस कार्य में हम इनको विद्यालय के सुरक्षा गार्ड भी मुहैया नहीं करा सकते क्योंकि उनका भी टाइमिंग होता है और यह महाशय  पूरे दिन विद्यालय खोलने  के चक्कर में रहते हैं । जो कि एक असंभव कार्य है।प्रधानाचार्य  ने कहा इसके लिए एक एग्रीमेंट करना पड़ेगा  एक हलफनामा में मैं सभी शर्ते लिख देता हूं और  दिव्य कुमार जी इसमें साइन करके पूरी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो जाएं ।“अपने छात्रों के जीवन के लिए मैं आपकी सभी शर्तें स्वीकार करता हूं”  दिव्य कुमार जी ने कहा और जेब से नीला पेन  पर निकालते हुए शानदार तरीके से उसमें अपने हस्ताक्षर चिपका दिए।  प्रधानाचार्य के चेहरे पर कातिलाना मुस्कान देखी जा सकती थी। Photo of a Man Sitting while Holding Newspaper
जिस को देखकर सभी अध्यापक  भयभीत थे शिवाय दिव्य कुमार के  आखिर वे  एक सिरफिरे अध्यापक थे । अब उस सिरफिरे अध्यापक को कौन  ? समझाएं कि उसे फंसाने की साजिश की जा रही है। 
आज दिव्य कुमार जी कुछ जल्दी ही उठ गए कसरत की दूध पिया  लेकिन शहद के साथ अपना ट्रक सूट पहना  शीघ्र ही  विद्यालय आ  धमके । बच्चे उनको अपना भाग्य  विधाता मानते थे  बच्चों के मध्य में  यह  किवदंती  प्रसिद्ध थी  एक बार गुरु जी ने आशीर्वाद दे दिया  तो जीवन में कभी असफल नहीं होंगे और यह  काफी हद तक सच ही  था। कारण अज्ञात है। लेकिन गुरु जी का आशीर्वाद किसी  परिश्रमी संघर्षशील निष्ठा वादी उन्हीं की तरह जी तोड  परिश्रम करने वाले लोगों के लिए सुरक्षित था। 
अपने छात्रों के भविष्य के लिए उनको दिया जाना जाने वाले सरकारी वेतन का प्रयोग  भी उनके दृष्टिकोण में  अनुचित  नहीं था  इसने कई बार  धन के अभाव में वह भोजन नहीं कर पाते थे।  आखिर सिरफिरे  अध्यापक  ठहरे। 
उनकी पारखी नजरें  बाल्यकाल में ही आईएएस आय एफ एस आईपीएस जैसी प्रशासनिक  सेवाओं के अधिकारियों की आधिकारिक घोषणा कर देती और जो आगे चलकर सत्य साबित होती है इससे इलाके में दूर-दूर तक उनका नाम फैल गया और  क्यों ना फैले श्री कुमार ऐसे अध्यापक थे  जिन्होंने शिक्षा के दीप्तिमान दिए में अपने जीवन के तेल की आहुति दी थी  जो छात्रों के जीवन में वरदान साबित हुई  प्रधानाचार्य भी अब रिटायर हो चुके थे, पूरे विद्यालय में अब उनका एक भी विरोधी नहीं था निश्चय ही इस बार वह प्रधानाचार्य चुने जाएंगे इसमें कोई संदेह नही है । 
 श्री कुमार अब 35 वर्ष की उम्र में बुजुर्ग लगने लगे थे दिन-रात के अथक परिश्रम ने उनके शरीर को तोड़ दिया था कैंसर और डायबिटीज में उन्हें युद्ध में ललकार दिया था जिससे दिन रात में युद्ध कर रहे थे और उनके विद्यार्थी बड़े-बड़े पदों पर सुशोभित हो रहे थे सम्मान था उनका पूरे क्षेत्र में लेकिन घर में अन्न नहीं था  क्योंकि वे विद्यार्थियों से फीस नहीं लेते थे और अपने सरकारी वेतन का सदैव वही हश्र होता जो होना चाहिए था  वह असमय ही गरीब छात्रों की फीस भरने में चला जाता था । 
 अब दिव्य जी ने घर जाना छोड़ दिया था आखिर वहां था ही कौन माता पिता थे ही नहीं शादी उन्होंने कि नहीं थी  अपने छात्रों को ही अपने  बच्चों मानते थे । बड़े-बड़े अधिकारी आ कर  जब उनके चरण छूते तो  सह अध्यापक अंदर से  जल भुन  जाते ।  विद्यालय के एक छोटे से कमरे में ही उन्होंने अपना आवास बना लिया किसी प्राइवेट कंपनी के कस्टमर केयर लाइन की तरह वे अपने छात्रों के लिए 24 घंटे उपलब्ध हो गए यही उनकी दिनचर्या थी ।   उनके ही एक छात्र  जिला अधिकारी बनकर उनके जिले आये  जिन्होंने उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें  प्रधानाचार्य जी का पद पर प्रमोशन लेटर दे दिया और अब हमारे   दिव्य जी प्रधानाचार्य जी बन गए।लोगों ने उन्को  शुभकामनाएं भेजी 
उसी रात वे सोये रह गये सुबह  जब उनके विद्यार्थी पहुंचे तो उनका  स्वर्गवास हो चुका था यह खबर जंगल की आग की तरह पहुंच गई दूर-दूर से उनके प्रिय विद्यार्थी उनके अंतिम दर्शनों के लिए आ  पहुंचे  गुरु जी ने आज अपने सभी छात्रों अंगूठा दिखा  दिया सभी की आंखें  नम  थी लोग रो रहे थे अंतिम यात्रा के जनसैलाब को रोक पाना  पुलिस के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था पीएसी बुलाई गई लेकिन भीड़ कंट्रोल नहीं हुई सुबह से शाम तक गंगा तट पर लोगों का मेला लगा रहा  मानो किसी सैनिक के   शहीद होने पर राजकीय सम्मान से उसका अंतिम संस्कार किया जा रहा हो लेकिन इतना सब कुछ होने के बाद भी उसके अंतिम संस्कार के पैसे नहीं थे।  क्योंकि  वह  एक  सरफिरा अध्यापक था। 
बाद में उस विद्यालय में  दिव्य कुमार जी की एक बड़ी प्रतिमा लगाई गई उस में फूल  मालाएं पहना  गये  लेकिन  मानवता की इस महान विभूति का जीते जी जो सम्मान और  देख रेख कि जानी चाहिए थी वह  ना हो सकी। यह सभी ने  स्वीकार किया।

शनिवार, 16 मई 2020

आंसुओं पर किसी का जोर नहीं चलता !

Boy in White and Red School Uniform Raising Hands Outdoors



बाबू समोसा वाले नाम से विख्यात एक सज्जन मेरे पड़ोसी बनकर बगल वाले कमरे में आये ।जब जाकर  मैंने चैन की सांस ली, उन दिनों मैं महाविद्यालय की पढ़ाई कर रहा था।  जीवन में मुझे  कुछ प्राप्त करने की अभिलाषा  मुझे ना तब थी  नहीं अब है। किंतु समोसे का मैं तब भी शौकीन था और आज भी हूं।इसलिए मेरी बाबू साहब से मित्रता होना स्वभाविक प्रक्रिया थी। खैर इन सब बातों से मैं आपको समोसा खाने के लिए मजबूर भी नहीं करूंगा। समोसा बाबू की बिक्री हेतु मैं ऐसा लिख रहा हूं।ऐसी बात भी आप ना सोचेगा।बाबू से मेरी मित्रता ऐसे हुई मेरी विश्वविद्यालय की मोटी मोटी पुस्तकें  देखकर बाबू साहब रोने लगे।मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ।मैंने सोचा बाबू साहब बड़े ही भावुक है। मेरी श्रमसाध्य  पढ़ाई पर बेचारे को दया आ गई होगी ,इस कारण आंसू निकल गए।  फिर मुझसे भी ना रहा गया मैं भी फूट फूट कर रोने लगा । जब बात रोने पर आ जाए तो तोलिया  गीला करना मे ,मैं अपने सम्मान का प्रश्न बना लेता हूं। जब बात मान सम्मान की हो  तो लोग आंसू क्या खून बहा देते हैं इस कारण मैंने अपने आंसू बहा कर संतोष किया।
अत्यधिक दुबले पतले होने कारण मैंने अपने खून को सुरक्षित रखने में ही अपनी भलाई समझा। बाबू जी ने पूछा आप क्यो  रो रहे हैं?मैंने पूछा आप क्यों रो रहे हैं? बाबूजी ने उत्तर दिया मुझे मेरी पत्नी की याद आ गई थी लेकिन तुम क्यों रोये ?मुझे आप को रोते हुए देख कर रोना आ गया।यार तुम तो बहुत ही  वहिहात आदमी हो किसी को भी रोता देख कर बिना मेहनत के आंखों से खारा पानी निकाल देते हो । नालायक कहीं के। मैंने कहा कोई बात नहीं क्यों इतना रो रहे हैं अगर पत्नी कि याद आ रही है तो गांव चले जाइए उनसे मिल लीजिए चिट्ठी या फोन कर लीजिए  इतना परेशान होने की जरूरत क्या है? वह बोले वह अब गांव जाने से भी नहीं मिलेगी मैं क्यों  नहीं मिलेगीबाबूजी दुखी मन से बोले वह अब  इस दुनिया में नहीं है।
मैं उनकी ओर बड़ी ही दुख भारी दृष्टि से देखता रहा। टेंशन नाट वाली स्टाइल में उन्होंने कहा अब मैं दूसरी शादी करने जा रहा हूं नहीं तो समोसे बेचना मेरा काम नहीं मेरे पिताजी लखनऊ में हलवाई की दुकान चलाते हैं मैं कक्षा  5 पास  करके उसका मैनेजर और  खजांची दोनों पद  संभाल रहा हूं किंतु परिस्थिति आ गई है कि मुझे यह सब करना पड़ रहा है। इसके बाद उन्होंने अपनी कहानी मुझे सुनाई  जो उन्हीं के शब्दों में नीचे लिखी है।
"मैं उन दिनों स्कूल जाया करता था तब पिताजी का भय था ।कक्षा 5 तक पढ़ा मास्टर जी को अपनी दुकान से मिठाई के 2 किलो भार से तोल दिया करता था , और उनके सम्मान में दो चार वाक्य  फेंकते हुए कहता गुरुजी आपके आशीर्वाद से यह प्रसाद में लाया हूं। कृपया इसे स्वीकार करने की कृपा करें ।महान दया होगी। इसका असर इस कदर होता की देखते ही देखते गुरुदेव अपने बाएं हाथ का प्रयोग करते उनके कथा अनुसार छात्रों को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करना उनके बाएं हाथ का कार्य था अब आप स्वयं ही अंदाजा लगा सकते होंगे गुरुदेव बाएं हाथ के कितने बढ़िया खिलाड़ी  थे। गुरुदेव की कहानी दो गुरुदेव जाने।  गुरुदेव की कृपा से कक्षा 5 के परीक्षा फल घोषित हुए परिणाम  सुनिश्चित था । मैं  प्रथम श्रेणी से  उत्तीर्ण हो गया। अबकी बार गुरुदेव सीधा पिताजी के  दुकान में आ  धमके  और हमारी सारी पोल खोल दी पिताजी ने बड़े सम्मान के साथ 2 किलो के मिठाई का पैकेट बनाकर गुरुदेव के चरण कमलों पर अर्पित कर दिया गुरुदेव सदा  मिठाई खिलाते रहो का आशीर्वाद दिया।उनके इस आशीर्वाद की वजह से हमारे जीवन में मिठाई की कभी कोई कमी नहीं हुई। धन्य है एसे गुरुजी और उनका आशीर्वाद ।  इसके साथ पिताजी ने 2 किलो मिठाई वाली शिक्षा का अंत कर दिया।हमने भी सोचा चलो स्कूल जाने से प्राण छूटे। इसके बाद गुरु जी के आशीर्वाद और अपनी मेहनत के बल पर हमने अपनी चार बड़ी बहनों का विवाह संपन्न करवाया  एक बात और मेरा छोटा  भाई तुम्हारी तरह विश्वविद्यालय की पढ़ाई कर रहा है भारतीय सेना में अफसर बनना चाहता है। इस तरह भाई मैं अपने सभी कर्म पूर्ण करके सइलेंट मोड में आ गया था तभी मेरे घर वालों ने  अति रूपवती, गजगामिनी, मृगनयनी, कामिनी, मनोहारी, मृदुभाषी स्त्री से मेरा विवाह करा दिया जो मेरे जीवन में घन घोर ज्वार भाटा लेकर आया। कहते हैं विवाह सौभाग्य लेकर आता है किंतु मेरे लिए दुर्भाग्य लेकर आया मेरी पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी जो भी धन थामैंने  उनके इलाज में लगा दिया किंतु उनको बचा ना पाया यही मेरा दुर्भाग्य था।मुझे आज भी याद है उन दिनों वह घर का सारा काम करती थी मेरे साथ बैठ कर मेरी सेवा भी करती थी  मेरे सोने के बाद वह पढ़ाई भी करती थी। बस किसी तरीके से मैं एम० ए०  कर लूं आपको भट्टी के पास बैठना नहीं पड़ेगा मैं प्राइमरी स्कूल में अध्यापिका बन जाऊंगी ऐसा कहते हुए उसकी आंखों में एक विशेष चमक होती है ।जिसका मैं  वर्णन नहीं कर सकता हूं।  और न  जाने कैसे कैसे सपने बुनती थी। बड़ी भोली थी ।हम शादी के पहले कभी नहीं मिले थे सच तो यह है मैं उसे काबिल ही नहीं था।वह इतना ज्यादा पढ़ी लिखी थी और मैं अनपढ़।
Woman in Red and Gold Dress

किंतु उसने  मुझसे विवाह करना स्वीकार कर लिया था बिना किसी दबाव के ।  मुझे इतना प्रेम किया उसने और ना ही अपनी पढ़ाई की धौस जमाई ।वास्तव में वह कोई देवी थी।  किंतु मेरे भाग्य में सुख कहां हैमैंने उसका डॉक्टरी परीक्षण करवाया उसको  कैंसर  निकला। इस  गरीबी  में हमसे जो बन पड़ा हम उनका इलाज करवाया किंतु हम उनको बचा ना सके। एम०ए० का रिजल्ट आ गया लेकिन उनकी मौत के बाद। वह प्रथम श्रेणी से पास हुई थी लेकिन कौन खुशी मनाएं? मैं तो जैसे पागल ही हो गया था ,एक अंधेरे कमरे में बंद रहने लग गया था।ना कुछ खाना ना बोलना बिल्कुल शांत शायद अपनी मृत्यु की प्रतीक्ष कर रहा था ।लेकिन मैं कोई  नचिकेता तो हूं ही नहीं जो यमराज मुझ पर प्रसन्न हो जाए।सो मैं आज तक जीवित हूं । घर में एक मां को छोड़कर सभी मुझे इस पागल समझने लगे हैं। लगभग सभी ने मुझे त्याग दिया है मेरी हालत बदतर हो रही है। अब मै इस शहर में समोसे बेचने आया हूं क्योंकि मैं आज भी अपने आपको अपनी पत्नी का अपराधी समझता हूं।लेकिन घर वाले मेरी शादी करना चाहते हैं और मैं उनकी बात काट नहीं सकता आखिर मैं स्त्री सुख से वंचित क्यों रहूँ?बिना पत्नी के इतना बड़ा जीवन मैं कैसे कट सकता हूं। इसलिए घर वालों के कहने पर मैं विवाह करने जा रहा हूं तुम्हारी  पुस्तके देखकर मुझे अपनी पहली पत्नी की सुंदरता शालीनता और मृत्यु की चित्कार के सभी  दृश्य आंखों के सामने आ गए और उसकी स्मृति जाग गई इसलिए आंखों से आंसू निकल आए आंसुओं पर किसी का जोर नहीं चलता लेकिन  विवाह पर तो चलता है। इसलिए करने जा रहा हूं |"इतना कहने के बाद वे चुप हो गए।मैंने भी उनकी हां में हां मिलाया और उनकी दूसरी शादी पर प्रश्न करना उचित न समझा।परंतु इस तरह के लोगों को क्या कहा जाए यह जरूर सोचता रहा?
Man in White Indian Attire Standing  


शुक्रवार, 15 मई 2020

पुस्तकालय का एक दिन


 मैं हमेशा की तरह पुस्तकालय की किताबों के बीच छुपा बैठा  था| जाने अनजाने मुझे  प्रेमचंद्र जयशंकर प्रसाद निराला  अज्ञेय जी से मिलने का मैंने यही तरीका खोज निकाला था। लाइब्रेरी स्टाफ मेरी इस हरकत का कायल न था। बात कुछ यू थी मेरी  एकांत में पढ़ने की आदत है किसी के सामने मैं पढ़ने लिखने का बचपन से कायल ना था शरत जी की जीवनी पढ़ने से पहले मैं अपने आप को  बहुत ही निरीह प्राणी  समझता था। कोई मुझे देख ना ले इसलिए मै पुस्तकालय में जहां  रद्दी पुस्तके रखी  जाती  हैं उसी के पास एक टूटी धूल भरी कुर्सी वर्षों से अपने ऊपर बैठने वाले का  इंतजार करती रहती थी ।उसकी पीड़ा को समझने वाला मैं पहला व्यक्ति था।
कुर्सी पर बैठने के बाद मैंने शरदचंद्र जी के उपन्यास चरित्रहीन को उठाया ही था पढ़ने के लिए जैसा कि मेरे जीवन में अनेकों बार हुआ है| व्यवधान स्वरूप एक अर्धसरकारी कर्मचारी आ गए।
उन्होंने कहा  आप  इस पुस्तकालय में काम करते हैं?
मैंने कहा जी  नहीं।
आप यहां क्या पढ़ते हैं?
जी मैं यहां हिंदी साहित्य मे अध्ययन कर रहा हूं। क्योंकि मैं हिंदी साहित्य का विद्यार्थी हूं।
 तो क्या आप मुझे  इंग्लैंड के इतिहास पर कोई  पुस्तक दिला सकते हैं ?
 क्यों नहीं ?
मैंने अलमारी नंबर  देखा,  फिर मैं उस अलमारीकी तरफ बढ़ता हूं,  लेकिन वहां कोई भी पुस्तक नहीं मिलती है।  मैं निराश होकर पूरे पुस्तकालय की परिक्रमा करता हूं अभी किसी और अलमारी पर  यूरोप के इतिहास नामक  पुस्तक मिलती है जिज्ञासा वश में उसको  पढ़नेलगता हूं। यह आप क्या कर रहे हैं मुझे इंग्लैंड का इतिहास चाहिए  यूरोप का नहीं।
  भाई साहब मैंने कहा इस मे इंग्लैंड के इतिहास के भी कई अध्याय दिए हैं।
 पर मेरा काम होगा नहीं उन्होंने माथा ठोक लिया।
  मैंने पूछा आपको  इंग्लैंड का इतिहास क्यो  चाहिए भारत का क्यो नही ? मेरा बेटा एक  पब्लिक स्कूल में कक्षा 1 में पड़ रहा है जिसको असाइनमेंट बनाना है। वे गुस्से में बोले। मैंने उनकी उत्तर को दो तीन बार दोहरा दिया ।वह गुस्से में 100 -200 गालियां  देने लगे।बच्चे को इंडिया में पैदा कीजिए और असाइनमेंट  इंग्लैंड का बनाइए यह कहां का न्याय है?
 अब वह पूरी तरीके से भावनाओं में बह गए  एक हमारा जमाना था बी० ए०एम० ए ० तो हरे दुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता मैं कट  जाया करता था | यह असाइनमेंट  नाम का कोई सवाल ही नहीं था। और अब इनका बस चले तो बच्चों के मां-बाप से उनके पैदा होने का भी असाइनमेंट बनवा ले।
और फिर मेरी तरफ  मुखातिब  होकर कर बोले  तुम पढ़े लिखे गवार हो एक पुस्तक नहीं ढूंढ पाए पूरा दिन लाइब्रेरी से चिपके रहते हो  गधे कहे के निकम्मे ।
मैं आपलक  उनको देख रहा था मानो मैंने कोई गलती कर दी हो उनकी पुस्तक के बारे में उनकी मदद करके।मैं चुप हो गया मानो मैंने अपनी पराजय स्वीकार कर लिया हो। लाइब्रेरी स्टाफ एवं अपने पुत्र के विद्यालय के स्टाफ के माताओं बहनों के  अपमान में आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग करते रहे। अंत में उन्होंने मेरे द्वारा दी गई पुस्तक उठाकर  लाइब्रेरी से बाहर निकल गए।एक प्रश्न मैं उनसे पूछना चाहता था किंतू  चाणक्य नीति पढ़ने के कारण पूछ ना सका ।वापस में अपनी कुर्सी में बैठते हुए सोचता हूं कि शरदचंद्र जी का उपन्यास चरित्रहीन है अथवा ये महाशय।और इसी सोच विचार मे मै अपने घर कि ओर चल दिया........

बुधवार, 13 मई 2020

काली टाई

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जब कुमकुम नाथ विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त करके परास्नातक घोषित कर  दिए गए तब जाकर उनको अपनी बढ़ती उम्र और घटती आमदनी का एहसास हुआ।  कुमकुम नाथ के  माता पिता ने  उनको किसी  उच्च पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए उकसाया किंतु   बेचारे बिल्कुल फिसड्डी निकले समस्त  प्रयासों के परिणाम स्वरूप वे असफल घोषित कर दिए गए जब बाप के तानो एवं पड़ोसियों के अफसानो से  उनका दम घुटने लगा  तो वे  छोटी मोटी  5या  6 हजार की नौकरी के लिए भागे। वहां भी उनको असफलता ही हाथ लगी ।  ऐसी बिगड़ी स्थित में उनको एक मित्र के सहयोग से किसी दफ्तर में नौकरी मिल गई तब जाकर उन्होंने चैन की सांस ली। किंतु  कुमकुम नाथ वर्तमान के राजनेताओं के समान कर्मठ एवं जुझारू थे  सो उनकी आवश्यकताएं  6  हजार के वेतन की न्यू पर ना  टिक सकी।
 जब वे  अपने कार्यालय में कार्यरत  थे तब उनको एहसास हुआ  मानव व जानवर में क्या अंतर है ? कार्यालय मैं 8 घंटे के दौरान 10 मिनट का खाना खाने का समय मिलता था । जो किसी सेना के प्रशिक्षण की याद दिलाता था कुमकुम नाथ हिंदी साहित्य से परास्नातक किया था , सो  निराला जी की भिक्षुक पढ़े थे आज तक उन्हें ऐसा अपमान जनक शब्द कभी ग्रहण नहीं करने पर पड़े थे । किंतु समय की नजाकत देख उन्होंने इसे भी स्वीकार कर लिया।
हद तो तब हुई जब 1 महीने कि नौकरी के बाद दूसरे महीने की अंतिम तिथि पर यानी 2 महीने काम करने के बाद उनको वेतन दिया  गया  वह भी पहले महीने का ऐसी स्थिति कुमकुम नाथ कि जीवन में प्रथम बार आई थी सो वे  नवीन कार्य की खोज पर निकल पडे। इस पूरे कार्यक्रम में उनको अत्यधिक क्रोध आ गया और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया|
और जिस प्रकार भारतीय मोक्ष की कल्पना करते हैं उसी प्रकार कुमकुम नाथ जी बेरोजगारी को प्राप्त हुए।
और ऐसी अवस्था में ही अपने मित्र से मिलने जा पहुंचे मित्र ने बड़े ही उदार भाव से समाचार पत्र के रोजगार वाले  अंश की कटिंग कुमकुम नाथ के हाथ में थमा कर बोले मित्र लो मनपसंद रोजगार छांट लो बिल्कुल फ्री मे!
कुमकुम  नाथ ने  बड़ी ही गंभीरता एवं सूझबूझ से उस पत्र का निरीक्षण किया तब जाकर उनको एक प्रबंधक पद की नौकरी प्राप्त हुई। उसमें यह लिखा था शुरुआत में ट्रेनिंग दी जाएगी ट्रेनिंग के 7से 8माह बाद 50000 मासिक वेतन दिया जाएगा इस विज्ञापन  ने कुमकुम नाथ जी को जलेबी खाने की भावना की प्रसन्नता से भर दिया था ।
सो उन्होंने  उस विज्ञापन निकालने वाले को मन ही मन आशीर्वाद दिया एवं उसको और उसकी आने वाली समस्त पीढ़ियों को सशरीर स्वर्ग जाने की मंगल कामना की ।
दूसरे दिन  कुमकुम नाथ हम अमुक स्थान पर पहुंच गए वहां की व्यवस्था देखकर दंग रह गए सोचने लगे  प्रबंधक की पोस्ट पर पहुंचने भर की देर है यह गद्देदार कुसी मेज और केविन  सब पर अपना अधिकार होगा उस पर 50000 मासिक की सोने पर सुहागा का काम करेगी इंटरव्यू पर  कुमकुम नाथ जी से उनके जीवन पर अनेक प्रश्न पूछे गए इंटरव्यू लेने वाले ने सारे उत्तरों को स्वीकार कर लिया लेकिन मैटर टाइ में फस गया लिहाजा कल उनको एक काली टाइ पहनकर आने के लिए कहा गया ।  कुमकुम नाचने मामला  सेट समझा।इधर कुमकुम  नाथ ने सोचा  जब इतनी बड़ी पोस्ट का जुगाड़ हो गया है तो ससुरी टाई का चीज है उसका भी हम जुगाड़ कर लेंगे सो इसी के चलते हैं वह अपने मित्र श्रीमान मुरारी के घर पहुंचे और उनके दफ्तर के कोट  से लिपटी हुई काली टाई छीन ली इस बार मित्र ने उनको रोका भाई अगर आप ही ले लोगे तो हम अपने के दफ्तर कैसे जाएंगे ?हमें वहां अंदर नहीं जाने दिया जाएगा ऐसा मत कीजिए। कुमकुम नाथ  ने रौब झाड़ते हुए का इस तरह की टाई की हम सेंचुरी लगा देंगे बस वक्त आने दो। इसके बाद वे जबरदस्ती ही अपने घर चले गये।
दूसरे दिन वे अपने नए दफ्तर पहुंचे जहां उनका पहले से दो बड़े बड़े काले अक्षरों से भरे हुए पेजो से हुआ जिसमें उनको अपने जीवन की सभी घटनाएं लिखनी थी और नौकरी ना छोड़ने की शपथ भी लिखनी थी ।इस कार्य को उन्होंने बड़ी ही कार्यकुशलता से अंजाम दिया । मानो अब प्रबंधक की कुर्सी ज्यादा दूर ना हो किंतु अगले पल ही उनको समूह चर्चा के परीक्षण के लिए तीन पूर्व खिलाड़ियों के साथ भेज दिया गया खिलाड़ी उनको बहुत दूर किसी लोकल बस में ले गए अब तो भाई हमारे प्रबंधक का अपमान हो गया धूल भरी सड़कों पर उनको उतार दिया गया हाथ में मोटी मोटी  किताबें थमा दी गई  एक किताब को जब ₹10000 में बेचने का आदेश दिया गया सुबह से शाम तक वे सड़क पर किताबें बेचते रहे इतनी महंगी किताब का उन्हें एक भी खरीदार ना मिला आए थे मैनेजर बाबू बनने और एक सड़क छाप विक्रेता बन गए चेहरा पूरा धूल मिट्टी से काला हो चुका था कपड़ों में भी धूल मिट्टी भर गई थी जो कि हमारे प्रबंधक का घोर अपमान था । कुमकुम  नाथ के  के गले में पड़ी हुई काली टाई ।  बेहद ही रोमांचक ढंग से हिल  डुल रही थी।
तभी उनके मन में विचार आया इसी काली टाई सब किया धरा है! उसीसे वे  अपना गला खोटना चाहते थे किंतु बेचारे मरने से बहुत डरते थे इसलिए ऐसा कर ना सके। अंत में हार कर अपने साथ आए हुए सभी  खिलाड़ियों के उन्होंने हाथ जोड़कर कहा साहब हम मैनेजर बनने आए थे दर दर दर पुस्तके दिखाकर लोगों को ठगने नहीं आए थे हम साहित्य के परास्नातक हैं हम ऐसा कार्य नहीं कर सकते हैं हमें माफ कीजिए इसके साथ ही उन्होंने दो कसमें खाई पहली टाई न  पहनने की दूसरी विज्ञापन ना पढ़ने की इसके बाद उन्होंने टाई निकाली और अपने जेब में डाल लिया  और पुन:  बेरोजगारी को प्राप्त हुए।


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